कश्मीर में जवानों का मनोबल बनाए रखने की कोशिश अफसरों को पड़ी भारी!

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: September 14, 2023 10:54 IST2023-09-14T10:53:26+5:302023-09-14T10:54:16+5:30

यह बात अलग है कि करीब 3 सालों के बाद सेना ने किसी कर्नल रैंक के अधिकारी को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में खोया है।

jammu kashmir Efforts to maintain the morale of soldiers in Kashmir cost the officers dearly | कश्मीर में जवानों का मनोबल बनाए रखने की कोशिश अफसरों को पड़ी भारी!

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

श्रीनगर: जंग-ए-मैदान के बारे में अभी तक यही कहा जाता था कि लड़ती तो फौजें हैं और नाम सरदारों का होता है। अर्थात जवान ही मैदान में लड़ाई करते हैं और अफसरों का तो सिर्फ नाम होता है पर कश्मीर में ठीक इसके उल्ट है।

जवानों का मनोबल कायम रखने को कमांडिंग आफिसर रैंक के अफसर भी जवानों के कंधे से कंधा मिला कर आतंकियों के विरूद्ध मोर्चा ले रहे हैं और यही कोशिश उन्हें भारी भी साबित हो रही है।

कल शहादत पाने वाले 19 राष्ट्रीय रायफल्स के कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशुतोष इसका ता जा उदाहरण हैं। इससे पहले वर्ष 2020 में 3 मई को 21 राष्ट्रीय रायफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा व मेजर अनुज सूद ने अपनी शहादत दी थी।

यह बात अलग है कि करीब 3 सालों के बाद सेना ने किसी कर्नल रैंक के अधिकारी को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में खोया है। जबकि 3 मई 2020 में पांच सालों के अंतराल के बाद सेना ने कर्नल आशुतोष शर्मा को खोया था और उससे पहले वर्ष 2015 में उसने कर्नल रैंक के दो अधिकारी खो दिए थे और उसके नीचे के रैंक के अधिकारियों की शहादत फिलहाल रूक नहीं पाई है।

वर्ष 2015 में 17 नवम्बर को 41 आरआर के कमांडिंग आफिसर संतोष महादिक भी कुपवाड़ा में वीरगति को उस समय प्राप्त हुए थे जब वे एलओसी क्रास कर आए आतंकियों के एक गुट से भिड़ गए थे और वे अपने जवानों को फ्रंट से लीड कर रहे थे। उसी साल जनवरी में कर्नल एमएन राय भी शहीद हो गए थे।

वर्ष 2015 में ऐसी कोशिशों में सेना के करीब 5 अफसरों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी। शहादत देने वालों में कर्नल रैंक से लेकर मेजर, कैप्टन और लेफ्टिनेंट रैंक के अधिकारी भी शामिल थे।

यह सिर्फ 2015 के साल का आंकड़ा है, और अगर आतंकवाद के दौर के इतिहास पर एक नजर दौड़ाएं तो ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारियों की शहादत से भी कश्मीर की धरती रक्तरंजित हो चुकी है। सबसे ज्यादा शहादतें सेना को वर्ष 2010 में देनी पड़ी थीं जब उसके 10 से ज्यादा अफसर शहीद हुए थे।

सेना को सबसे ज्यादा शहादतें वर्ष 2010 में देनी पड़ी थीं जब उसके 10 से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारी शहीद हो गए थे। वर्ष 2010 की एक घटना कुपवाड़ा के लोलाब इलाके की भी थी, जहां 18 राष्ट्रीय रायफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल नीरज सूद को अपनी शहादत देकर जवानों का मनोबल कायम रखने जैसे कदम को उठाना पड़ा था।

सेना के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि 40 साल के युवा कर्नल सूद आतंकियों से जारी मुठभेड़ का हिस्सा नहीं थे पर वे अपने जवानों का हौंसला बढ़ाने की खातिर उन्हें लीड करना चाहते थे।

कर्नल मनप्रीत या कर्नल शर्मा या फिर कर्नल संतोष पहले अफसर नहीं थे जो आतंकियों के खिलाफ मोर्चे पर जुटे अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने की खातिर उन्हें लीड करना चाहते थे और शहादत पा गए बल्कि इस सूची में कई अफसरों के नाम दर्ज हैं।

वर्ष 2010 का ही रिकार्ड देखें तो तब 24 फरवरी को सोपोर मंे आतंकियों के साथ मुठभेड़ में कैप्टन देवेंद्र सिंह ने शहादत पाई तो 4 मार्च को ही पुलवामा जिले के डाडसर इलाके में कैप्टन दीपक शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए।

जवानों का मनोबल कायम रखने की खातिर फ्रंट पर खुद बंदूक उठा कर आतंकियों का मुकाबला करते हुए शहादत पाने वाले सेना के अफसरों की सूची यहीं खत्म नहीं हो जाती।

20 मार्च 2010 को ही कंगन में ग्रेनेड फूटने से मेजर जोगेंद्र सिंह शहीद हो गए तो दो दिनों के बाद 22 मार्च को कुपवाड़ा जिले के हफरूदा जंगल में हुई मुठभेड़ में मेजर मोहित समेत तीन जवानों को शहादत देनी पड़ी। यही नहीं उसी वर्ष 5 मई को भी उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा जिले में 15 घंटों तक चलने वाली भीषण मुठभेड़ में मेजर जोगेंद्र सिंह को शहादत देनी पड़ी थी।

यह सिर्फ वर्ष 2010 के नाम थे उन सेनाधिकारियों के जिन्होंने शहादत पाई। उन्हें उस समय शहादत देनी पड़ी जब कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ देने का दावा किया जा रहा था जबकि पिछले 34 सालों के आतंकवाद के इतिहास में शहादत पाने सैंकड़ों सैन्य अफसर हैं जिनकी शहादत के कारण ही आज कश्मीरी आतंकियों से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

Web Title: jammu kashmir Efforts to maintain the morale of soldiers in Kashmir cost the officers dearly

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