संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष जोड़े जाने से भारत की आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई: जम्मू कश्मीर चीफ जस्टिस

By विशाल कुमार | Published: December 6, 2021 07:31 AM2021-12-06T07:31:38+5:302021-12-06T07:35:14+5:30

जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल ने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्य, गुप्त, मुगलों और अंग्रेजों ने इस पर शासन किया, लेकिन भारत को कभी भी धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया, क्योंकि इसे एक आध्यात्मिक देश के रूप में स्वीकार किया गया था।

jammu-kashmir-chief justice-secular-constitution preamble-india-spiritual-image | संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष जोड़े जाने से भारत की आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई: जम्मू कश्मीर चीफ जस्टिस

संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष जोड़े जाने से भारत की आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई: जम्मू कश्मीर चीफ जस्टिस

Highlightsजम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भारत को अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश बताया।भारत को धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया।भारत का नाम आध्यात्मिक गणराज्य भारत होना चाहिए था।

श्रीनगर: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल ने भारत को अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश बताते हुए कहा कि 1976 में संविधान की प्रस्तावना में पहले से ही उल्लिखित 'संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र' में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' को जोड़ने से इसकी आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अधिवक्ता परिषद द्वारा यहां आयोजित एक समारोह में 'धर्म और भारत का संविधान: परस्पर क्रिया' पर मुख्य व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि भारत अपने सभी नागरिकों की देखभाल करने में सक्षम है और इसमें समाजवादी प्रकृति निहित है। 

मिथल ने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्य, गुप्त, मुगलों और अंग्रेजों ने इस पर शासन किया, लेकिन भारत को कभी भी धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया, क्योंकि इसे एक आध्यात्मिक देश के रूप में स्वीकार किया गया था।

उन्होंने कहा कि 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़कर, हमने आध्यात्मिक स्वरूप की अपनी विशालता को संकुचित कर दिया है। इसे संकीर्ण सोच कहा जा सकता है। वरना भारत अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश रहा है और इसका नाम आध्यात्मिक गणराज्य भारत होना चाहिए था।

संशोधनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संशोधनों का होना अच्छा है क्योंकि ये मददगार साबित होते हैं, लेकिन जो राष्ट्रीय हित में नहीं हैं, वे किसी काम के नहीं हैं। कभी-कभी हम अपनी जिद के कारण संशोधन लाते हैं।

1976 में संविधान में किए गए चैप्टर 14 में मौलिक कर्तव्यों और उसके साथ 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े जाने जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत अच्छे शब्द, लेकिन हमें देखना होगा कि क्या इन संशोधनों की आवश्यकता थी, या इन्हें सही जगह पर जोड़ा गया है।

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