Interview: राकेश टिकैत ने फिर दिखाए सख्त तेवर, कहा- हमारा आंदोलन कभी खत्म हुआ ही नहीं, सरकार के रूख पर नजर है हमारी
By शरद गुप्ता | Published: April 20, 2022 02:27 PM2022-04-20T14:27:58+5:302022-04-20T15:00:28+5:30
राकेश टिकैत से लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता से किसानों से जुड़े सभी मुद्दों पर विस्तार से बात की. पढ़ें इसके मुख्य अंश...
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल तक चले आंदोलन की वजह से भारतीय किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राकेश टिकैत पूरे देश में चर्चित नाम हैं. उन्होंने लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता से किसानों से जुड़े सभी मुद्दों पर विस्तार से बात की. मुख्य अंश...
- जिन मुद्दों के लिए आपने इतना लंबा आंदोलन किया, क्या तीन कानूनों की वापसी से उनका समाधान हो गया है?
तीन कानून एक बड़ी समस्या थी जो फिलहाल खत्म हो गई है. लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सहित बाकी मुद्दे जस के तस हैं.
- एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने पर समिति बनाने के लिए सरकार ने आपसे नाम मांगे हैं, लेकिन आप दे क्यों नहीं रहे हैं?
न तो सरकार ने समिति का नाम तय किया है, न अध्यक्ष का और न सदस्यों की संख्या. न कार्यकाल का पता है और न ही उसका विषय. हम सरकार के झांसे में आने वाले नहीं हैं. हमसे दो सदस्यों के नाम मांगे हैं और यदि उन्होंने अपने आठ सदस्य रख दिए तो समिति में हमारी कोई सुनवाई कहां होगी? हमने सरकार को पत्र लिखा है. उत्तर का इंतजार है.
- सरकार का कहना है कि उसने लागत का डेढ़ गुना एमएसपी कर दिया है और अब दोगुना दाम करने जा रही है?
सब झूठ है. सरकार ने ए2 प्लस एफएल दिया है जबकि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट में सी2 प्लस 50 का फार्मूला था. सरकार ने किसान की मजदूरी नहीं जोड़ी और न ही जमीन का किराया जोड़ा. आप बताओ कोई भी दुकान, मकान बिना किराए के मिल जाती है? तो किसान की जमीन का किराया क्यों नहीं देती सरकार?
- क्या आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ लगे सभी आपराधिक मामले वापस हो गए हैं?
यह सभी मामले आमने-सामने बैठकर तय होते हैं. लेकिन सरकार तो डिजिटल वार्ता करना चाहती है. हमारी सरकार से आखिरी बातचीत 22 जनवरी 2021 को हुई थी. समाधान तो बातचीत से ही निकलेगा.
- समझौते के बाद आप लोगों ने उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाने की कसम खाई थी. उसका क्या हश्र हुआ?
हमने तो चुनाव लड़ा नहीं. न ही किसी का समर्थन या विरोध किया. हमारे आंदोलन में हर विचारधारा के लोग थे. वैसे भी क्या आपको पता नहीं है कि वे चुनाव कैसे जीत रहे हैं?
- अपने आंदोलन में आपने बड़े उद्योग घरानों से व्यापार पर पाबंदी लगाई थी. लेकिन आज उनके साइलो (भंडारगृहों) पर अनाज बेचने के लिए किसानों की लाइन लगी है. क्या किसान आपकी नहीं सुन रहे हैं?
इसलिए क्योंकि सरकार मंडी समितियां बंद कर रही है. मध्यप्रदेश में 182 मंडियां बंद होने के कगार पर हैं. हरियाणा और पंजाब में भी किसानों का अनाज रिजेक्ट किया जा रहा है. किसानों को जहां से पैसा मिलेगा वहां अपनी फसल बेचेगा. मजबूरी है. हवा में ऑक्सीजन मुफ्त है लेकिन कोरोना के दौरान सांस लेने में दिक्कत आने पर आने पर लोगों ने ऊंचे दाम देकर ऑक्सीजन खरीदी.
- छोटी जोत की वजह से किसान नुकसान में है. इसीलिए क्या सहकारी समिति बनाकर या बड़े उद्योगों को जमीन किराए पर देकर किसान के लिए खेती लाभप्रद हो सकती है?
सरकार तो चाहती है कि किसान अपनी जमीन बेच दे. कई रिपोर्ट आ चुकी है कि सरकार 65 प्रतिशत आबादी वाले किसानों की संख्या घटाकर 25 प्रतिशत ही रखना चाहती है. यानी 40 फीसदी किसान अपना खेत बेच दें. लेकिन उसके बाद किसान पेट कैसे भरेंगे, यह नहीं बता रही सरकार.
- तो समाधान क्या है?
जब तक कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा और ग्रामीण विकास नहीं होगा तब तक हालात नहीं बदलेंगे. तेलंगाना सरकार प्रति एकड़ 10000 रुपए किसानों को दे रही है. पूरी दुनिया में किसानों को सब्सिडी दी जाती है, तो हमारे यहां यह क्यों नहीं हो पाता? सरकार ब्राजील का मॉडल लाना चाहती है जहां केवल 285 लोगों के पास 80 प्रतिशत कृषि भूमि है. वहां के अधिकतर किसान तबाह हो गए हैं.
- विदर्भ, मराठवाड़ा, बुंदेलखंड जैसे ही क्षेत्रों में कृषि संकट है. आप उनकी बात क्यों नहीं करते?
इन सभी क्षेत्रों में पानी का संकट है. लाभकारी दाम नहीं मिल रहे. इसलिए किसान कर्ज वापस नहीं कर पा रहे और आत्महत्या कर रहे हैं. किसान संगठन मजबूत होंगे तो ही उनकी बात सुनी जाएगी.
- मध्यप्रदेश सरकार का प्रस्ताव है कि कर्ज वापस नहीं कर पाने वाले किसानों की जमीन नीलाम कर दी जाए.
दुखद है. किसान से खेती छुड़ाने के तरीके ढूंढ़ रही है सरकार. राजस्थान में एक किसान के सात लाख रुपए का कर्ज न चुकाने की वजह से पक्के मकान सहित लगभग ढाई करोड़ रुपए की उसकी 10 एकड़ जमीन सर्किल रेट से नीलाम कर 40 लाख वसूले. हमने किसान संगठनों को ले जाकर उसकी जमीन वापस दिलाई. जब आमने-सामने बैठकर सरकार से बातचीत होगी तो इन मुद्दों पर भी बात होगी.
- सरकार आपसे बात नहीं कर रही है. क्या किसान फिर से सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेंगे?
हमारा आंदोलन कभी खत्म हुआ ही नहीं. हम सरकार का रुख देख रहे हैं. आपस में भी परामर्श चल रहा है. जल्द ही फैसला लिया जाएगा.