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भारत का पहला आम चुनाव: जब 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से कट गये, जानिए चुनाव आयोग को क्यों लेना पड़ा ये फैसला

By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: March 01, 2024 3:56 PM

आजाद भारत के पहले आम चुनाव 1951–52 में हुए थे। ये चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था। इस चुनाव को सकुशल संपन्न कराने की जिम्मेदारी देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के कंधो पर थी।

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ठळक मुद्देभारत के पहले आम चुनाव 1951–52 में हुए थे25 अक्टूबर 1951 को हिमाचल प्रदेश की चिनी तहसील में पहला वोट डाला गयाचार महीने तक चली चुनावी प्रक्रिया फरवरी 1952 के आखिरी सप्ताह में समाप्त हुई

India’s First Lok Sabha Election 1951–52: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सारे राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरु कर दी है। लोकसभा चुनावों को भारतीय लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि भारत के पहले आम चुनाव कब हुए थे? भारत को आजादी 1947 में ही मिल गयी थी और जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) प्रधानमंत्री भी बन गए थे। लेकिन ये सरकार जनता के वोट से चुनी हुई सरकार नहीं थी। आजाद भारत के पहले आम चुनाव 1951–52 में हुए थे। आप सोच रहे होंगे कि यहां साल 1951 और 1952 दोनों का जिक्र क्यों है। दरअसल 25 अक्टूबर 1951 को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की चिनी तहसील में पहला वोट डाला गया। चार महीने तक चली चुनावी प्रक्रिया फरवरी 1952 के आखिरी सप्ताह में समाप्त हुई। 

ये चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं था। इस चुनाव को सकुशल संपन्न कराने की जिम्मेदारी देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के कंधो पर थी। तमाम मुश्किलों के बाद भी सुकुमार सेन ने इसे सफल बनाया। भारत के पहले आम चुनाव 1951–52 से जुड़ा हुआ एक किस्सा बहुत ही मशहूर है जब 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से काटने का आदेश मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner of India) सुकुमार सेन ने दिया था।

क्यों काटने पड़े  वोटर लिस्ट से 28 लाख महिलाओं के नाम

इस मामले का जिक्र प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा (Ramachandra Guha) ने अपनी किताब इंडिया ऑफ्टर गांधी में किया है। उनके अनुसार जब चुनाव आयोग के सदस्य वोटरों के पंजीकरण के लिए उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में पहुंचे तब उनको एक अजीब समस्या का सामना करना पड़ा। महिलाएं अपना नाम लिखाने से हिचकती थीं। अपने नाम की जगह वो अपनी पहचान “फलां की मां” या “फलां की पत्नी” के रुप में दर्ज कराना चाहती थीं।

आयोग के सदस्यों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। महिलाओं को वोट नहीं देना मंजूर था लेकिन नाम बताना नहीं। जब ये बात मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को पता चली तो वह बहुत परेशान हुए। उन्होने आयोग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाये। आयोग ने सख्ती की। इसकी वजह से लगभग 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से कट गये। इसकी वजह से काफी हंगामा भी हुआ लेकिन सुकुमार सेन अपने फैसले से पीछे नहीं हटे। अंततः इन महिलाओं को वोट देने के मौका नहीं मिला

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