भारतीय वायुसेना ने 'आपदा को अवसर' में बदला, रूसी हेलीकॉप्टरों के कलपुर्जों को देश में ही बनाना शुरू किया
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: August 18, 2023 05:41 PM2023-08-18T17:41:06+5:302023-08-18T17:42:28+5:30
रूस-यूक्रेन जंग के कारण जब स्पेयर पार्ट्स मिलने में देरी होने लगी तब वायुसेना ने रूसी मूल के हेलीकॉप्टरों के कलपुर्जों को देश में ही बनाना शुरू कर दिया। इससे सैकड़ों करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचाने और विमानन स्पेयर आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिली है।
चंडीगढ़: रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है और भारतीय सशस्त्र सेनाएं भी इससे अछूती नहीं रही हैं। भारतीय सेना और वायु सेना के पास मौजूदा हथियारों में एक बड़ा हिस्सा रूसी हथियारों का है। यही कारण है कि रूस जब यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा तब भारतीय सेनाओं को अपने हथियारों के लिए कलपुर्जे मिलने में देरी होने लगी। लेकिन भारतीय सेनाओं ने इसे आपदा में अवसर की तरह लिया और जरूरी पार्ट्स देश में ही बनाना शुरू कर दिया।
भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर बेड़े में रूसी हेलिकॉप्टर बड़ी संख्या में हैं। जंग के कारण जब स्पेयर पार्ट्स मिलने में देरी होने लगी तब वायुसेना ने रूसी मूल के हेलीकॉप्टरों के कलपुर्जों को देश में ही बनाना शुरू कर दिया। इससे सैकड़ों करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचाने और विमानन स्पेयर आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिली है। साथ ही मेक इन इंडिया योजना को बढ़ावा भी मिला है।
चंडीगढ़ स्थित 3-बेस रिपेयर डिपो (बीआरडी) ने वायु सेना के पहले स्वदेशी प्रतिस्थापन सेल होने का गौरव हासिल किया है। इसने विमानों के साथ-साथ एयरो इंजनों के लगभग 15,000 स्पेयर पार्ट्स का सफलतापूर्वक स्वदेशीकरण किया है। दरअसल एमआई श्रृंखला के हेलीकॉप्टरों के कुछ हिस्से रूस में निर्मित किए गए थे इसलिए 3-बीआरडी अपनी मरम्मत के लिए रूस पर निर्भर था। निर्धारित परिचालन घंटों के पूरा होने पर हेलीकॉप्टरों की ओवरहालिंग भी करनी होती थी। रूस के जंग में उलझ जाने के कारण डिपो पर असर पड़ा।
लेकिन बीआरडी ने इस समस्या का हल निकाल लिया। एयर कमोडोर राजीव श्रीवास्तव, एयर ऑफिसर कमांडिंग (एओसी), 3 बीआरडी, चंडीगढ़ ने बताया कि रूस ने अभी तक प्रौद्योगिकी हस्तांतरित नहीं की है, इसलिए हमें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने बताया कि एमएसएमई और रक्षा उत्पादन कंपनियों की मदद से, हम अपने देश में उनके स्पेयर पार्ट्स का निर्माण करने में कामयाब रहे हैं।
बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध का असर भारतीय सेना पर भी पड़ा है। चीन के साथ युद्ध के खतरे को देखते हुए डीआरडीओ पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से चलने में सक्षम और तेजी से तैनात किए जाने में आसान हल्के लड़ाकू टैंक जोरावर के निर्माण में जुटा था। अब इस टैंक को बनाने और इसका उत्पादन शुरू करने में भी रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण देरी हो रही है क्योंकि रूस से टैंक के पार्ट्स मिलने में देरी हो रही है।