हमास के हमले से लिया सबक, भारत अपनी सीमाओं की निगरानी के लिए ड्रोन तैनात करेगा
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: October 28, 2023 11:46 AM2023-10-28T11:46:00+5:302023-10-28T11:47:48+5:30
सेना इस प्रणाली को मई की शुरुआत में सीमा के कुछ हिस्सों में चालू करने पर विचार कर रही है। सीमाओं पर हर समय निगरानी रखने का कदम तब उठाया गया है जब पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के साथ पर्वतीय सीमा पर तनाव बढ़ा हुआ है।
नई दिल्ली: बीते 7 अक्टूबर को हमास के आतंकियों ने इजराइल पर चौंकाने वाला हमला कर के 1000 से ज्यादा नागरिकों और सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। इजराइल इस हमले का पूर्वानुमान लगाने में भी विफल रहा था और सीमा से घुसपैठ करते समय आतंकियों को ट्रैक करने में विफल रहा। अब भारत ने इस घटना से सबक लेते हुए अपनी सीमाओं की रंक्षा के लिए कुछ खास कदम उठाने का फैसला लिया है।
भारत इजराइल में हमास जैसे अचानक हमलों से बचने के लिए अपनी सीमाओं पर ड्रोन के साथ एक निगरानी प्रणाली स्थापित कर रहा है। देश के रक्षा अधिकारियों ने पिछले हफ्ते निगरानी और टोही ड्रोन के छह घरेलू विक्रेताओं से मुलाकात की और अगले महीने जल्द ही एक आदेश की घोषणा होने की उम्मीद है।
रक्षा सूत्रों के अनुसार ड्रोन के साथ सीमा की निगरानी प्रणाली की शुरुआत साल 2024 के मध्य तक शुरू हो सकती है। चीन तथा पाकिस्तान से दोहरे मोर्चे पर संभावित खतरे को देखते हुए भारतीय सैन्य रणनीतिकार समय-समय पर सुरक्षा और निगरानी प्रणाली की समीक्षा करते रहते हैं। ये पूरी कवायद चीन से बढ़े तनाव और यूक्रेन युद्ध के बाद से ही जारी है।
सेना इस प्रणाली को मई की शुरुआत में सीमा के कुछ हिस्सों में चालू करने पर विचार कर रही है। सीमाओं पर हर समय निगरानी रखने का कदम तब उठाया गया है जब पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के साथ पर्वतीय सीमा पर तनाव बढ़ा हुआ है। यूक्रेन में युद्ध ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अपने शस्त्रागार, युद्ध की तैयारियों और युद्ध के मैदान पर प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने पर भी मजबूर कर दिया है। हमास के हमले ने कुछ सुझाए गए उपायों को शीघ्रता से लागू करने के लिए प्रेरित किया है।
सीमा के पार से पाकिस्तान पहले ही हथियारों और ड्रग्स को भारत में भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। ये देखते हुए भी ड्रोन निगरानी प्रणाली की जरूरत महसूस की जा रही है। इस प्रणाली को सीमाओं के पूरे हिस्से को कवर करने में लगभग 18 महीने लग सकते हैं और इसकी लागत सालाना 500 मिलियन डॉलर तक हो सकती है। ड्रोन बिना लैंडिंग के लंबे समय तक काम कर सकते हैं। ड्रोन सीमाओं के साथ पारंपरिक रडार नेटवर्क के बैक-अप के रूप में भी काम करेंगे और सीधे स्थानीय कमांड सेंटरों को ताजा जानकारी भेजेंगे।