भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए: अरूप राहा

By भाषा | Updated: August 23, 2021 17:30 IST2021-08-23T17:30:35+5:302021-08-23T17:30:35+5:30

India should not engage militarily in Afghanistan: Arup Raha | भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए: अरूप राहा

भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए: अरूप राहा

वायुसेना के पूर्व प्रमुख अरूप राहा ने सोमवार को कहा कि भारत को अफगानिस्तान में सैन्य रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ हाथ मिलाकर खुद को नुकसान पहुंचायेंगे। भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पूर्व एयर चीफ मार्शल ने कहा कि अफगानिस्तान में शामिल होने के उनके ‘‘गलत उद्देश्यों’’ के परिणामस्वरूप चीन और पाकिस्तान की तालिबान नीति उन्हीं के लिए नुकसानदायक साबित होगी। राहा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि भारत को वहां जमीन पर उतरना चाहिए और परेशानी में पड़ना चाहिए। अफगानिस्तान में सैन्य भागीदारी खतरनाक है, और भारत को अमेरिकियों या नाटो बलों के भविष्य के ऐसे किसी भी कदम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।’’ अफगानिस्तान के बारे में कहावत को याद दिलाते हुए कि यह ‘‘साम्राज्यों का कब्रिस्तान’’ है, वायुसेना के पूर्व प्रमुख ने कहा कि अमेरिका ने 2001 और 2021 के बीच देश में 2,000 से अधिक सैनिकों को खो दिया था। एक जनवरी, 2014 से 31 दिसंबर, 2016 तक आईएएफ का नेतृत्व करने वाले राहा ने कहा कि अमेरिका ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अफगानिस्तान को खाली कर दिया है। उन्होंने कहा कि चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रूस जैसे देशों को भी लगता है कि उनका इस क्षेत्र में ‘‘अच्छा समय होगा।’’ राहा ने कहा, ‘‘ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि तालिबान उनकी एक भी नहीं सुनने वाला है। चीन विकास के नाम पर पैसे देकर उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहा है।’’ उन्होंने कहा कि चीन शिनजियांग प्रांत में तालिबान के शामिल होने और वहां अपनी जिहादी संस्कृति में घुसपैठ करने की आशंका से सावधान हैं। शिनजियांग में कम्युनिस्ट देश ने कथित तौर पर ‘‘उइगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया और उनका दमन किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दो से पांच साल के भीतर, चीन शिनजियांग में जिहादी आंदोलन की तपिश महसूस करेगा, जो अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करता है। चीन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा; उन्हें पहले से ही तिब्बत, हांगकांग और ताइवान में समस्याएं है। जहां तक तालिबान का सवाल है, दो से पांच साल में पूरी तरह से अफरातफरी मच जाएगी।’’ तालिबान नेतृत्व के उस दावे को खारिज करते हुए कि वे बदल गए हैं, राहा ने कहा कि वे ‘‘बर्बर हैं और वही करेंगे जो उन्हें सिखाया गया है।’’ राहा ने कहा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे संगठनों के पाकिस्तान में सक्रिय होने और यदि तालिबान अफगानिस्तान में एकजुट हो जाता है तो इस्लामाबाद को एक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि अफगान लोगों के पास अच्छी ताकत और हथियार हैं लेकिन वे तालिबान के खिलाफ वापस लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि बाहरी लोगों को बहुत अधिक शामिल होना चाहिए, अफगानों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने दें और यह तय करें कि वे क्या करना चाहते हैं और कैसे जीना चाहते हैं।

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