भारत को स्विस बैंक में खाता रखने वाले भारतीयों की पहली सूची मिली, काले धन का कच्चा चिट्ठा आयेगा सामने

By भाषा | Published: October 7, 2019 03:50 PM2019-10-07T15:50:42+5:302019-10-07T15:50:42+5:30

स्विट्जरलैंड के स्विस बैंक में भारत के नागरिकों के खातों से जुड़ी पहली सूची भारत को सौंप दी गई है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इससे काला धन के बारे में पता लगाने में बड़ी मदद मिलेगी।

India gets first information on Swiss bank accounts of Indians will help trace black money | भारत को स्विस बैंक में खाता रखने वाले भारतीयों की पहली सूची मिली, काले धन का कच्चा चिट्ठा आयेगा सामने

भारत को स्विस बैंक में खाता रखने वालों की पहली सूची मिली (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsभारत को अपने नागरिकों के स्विस बैंक खातों की पहली सूची मिलीकाले धन के बारे में पता लगाने में इस सूची से मिल सकती है बड़ी मदद

स्विट्जरलैंड की सरकार ने कहा है कि सूचना के सूचना के स्वत: आदान-प्रदान की व्यवस्था के तहत भारत को अपने नागरिकों के स्विस बैंक खातों की पहली सूची सौंप दी गई है। काला धन के बारे में पता लगाने की ओर इसे बड़ी सफलता माना जा रहा है। न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार स्विट्जरलैंड के कर विभाग के अधिकारियों ने कहा कि सितंबर 2020 में भारत के साथ फिर वित्तीय खातों की सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा।

भारत उन 75 देशों में शामिल है जिसके साथ स्विट्जरलैंड फेडरेल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन (FTA) ने वित्तीय खातों संबंधित जानकारी साझा की है। यह साझा की गई जानकारी AEOI (अकाउंट इनफॉर्मेशन इन टैक्स मैटर्स) के वैश्विक मापदंड के तहत है। AEOI के तहत सक्रिय बैंक खाते और वे जो 2018 में बंद कर दिये गये, के बारे में जानकारी दी जानी है। एटीएफ के प्रवक्ता ने पीटीआई से कहा कि भारत को पहली बार एईओआई ढांचे के तहत खातों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है।

हालांकि, सूचनाओं के इस आदान प्रदान की कड़े गोपनीयता प्रावधान के तहत निगरानी की जाएगी। एफटीए के अधिकारियों ने भारतीयों के खातों की संख्या या उनके खातों से जुड़ी वित्तीय संपत्तियों का ब्योरा साझा करने से इनकार किया। 

कुल मिलाकर एफटीए ने भागीदार देशों को 31 लाख वित्तीय खातों की सूचना साझा की है। वहीं स्विट्जरलैंड को करीब 24 लाख खातों की जानकारी प्राप्त हुई है। साझा की गई सूचना के तहत पहचान, खाता और वित्तीय सूचना शामिल है। इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्योरा दिया गया है। 

स्विट्जरलैंड सरकार ने अलग से बयान में कहा कि इस साल एईओआई के तहत 75 देशों के साथ सूचना का आदान-प्रदान किया गया है। इनमें से 63 देशों के साथ यह परस्पर आदान-प्रदान है। करीब 12 देश ऐसे हैं जिनसे स्विट्जरलैंड को सूचना तो प्राप्त हुई है लेकिन उसने उनको कोई सूचना नहीं भेजी है क्योंकि ये देश गोपनीयता और डेटा सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर पाए हैं। 

इन देशों में बेलीज, बुल्गारिया, कोस्टा रिका, कुरासाओ, मोंटेसेराट, रोमानिया, सेंट विन्सेंट, ग्रेनेडाइंस और साइप्रस शामिल हैं। इसके अलावा बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, केमैन आइलैंड, तुर्क्स एंड कैकोज आइलैंड आदि देशों ने सूचना नहीं मांगी है, इसलिए उन्हें खातों का ब्योरा साझा नहीं किया गया है। एफटीए ने बैंकों, न्यासों और बीमा कंपनियों सहित करीब 7,500 संस्थानों से ये आंकड़े जुटाए हैं। 

पिछले साल की तरह इस बार भी सबसे अधिक सूचनाओं का आदान-प्रदान जर्मनी को किया गया है। बयान में कहा गया है कि एफटीए वित्तीय संपत्तियों के बारे में कोई सूचना नहीं देता है। भारत के नागरिकों के बारे मे साझा की गई सूचनाओं के बाबत एफटीए प्रवक्ता ने कहा कि सांख्यिकी आंकड़े भी गोपनीयता के प्रावधान के तहत आते हैं। एफटीए ने कहा कि अगले साल इस व्यवस्था के तहत 90 देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा। 

स्विट्जरलैंड में एईओआई को कानूनी आधार पर पहली बार एक जनवरी, 2017 को क्रियान्वित किया गया थाा। आदान-प्रदान के जरिये हासिल सूचनाओं के जरिये कर अधिकारी इस बात का पता लगा सकते हैं कि क्या करदाता ने अपने कर रिटर्न में विदेशों में अपने वित्तीय खाते का सही ब्योरा दिया है। 

इस व्यवस्था के तहत पहली बार सूचना का आदान-प्रदान सितंबर, 2018 में 36 देशों के साथ किया गया था। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन का वैश्विक मंच एईआईओ के क्रियान्वयन की समीक्षा करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सूचनाओं के आधार पर भारत बेहिसाबी धन रखने वाले लोगों के खिलाफ अभियोजन का ठोस मामला बना सकता है। 

कई अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस सूची में ज्यादातर उद्योगपतियों के नाम है। इनमें प्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी शामिल हैं जो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ कुछ अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों में बस चुके हैं।

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