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#KuchhPositiveKarteHain: 12 रुपए की दम पर अपनी किस्मत बदलने वाली देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे की कहानी

By भारती द्विवेदी | Published: August 11, 2018 7:29 AM

इसी साल 20 जनवरी को उन्हें देश की पहली ऑटो ड्राइवर के रूप में 'फर्स्ट लेडी' अवार्ड से नवाजा गया है।

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80 के दशक में जहां महिलाएं खाना बनाने, घर या बच्चों को संभालने या सिर्फ घर की चारदीवारी में रहकर काम करने तक ही सीमित थी। उस समय बाहर निकल कुछ करना बहुत बड़ी बात होती थी। ऐसे में शीला दावरे ने वो कर दिखाया जो आज से पहले किसी और महिला ने करने की सोची भी नहीं थी। 80 के दशक में शीला दावरे ने देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर होने का खिताब हासिल किया। उन्होंने मात्र 18 साल की उम्र में अपने मां-बाप का घर परभनी छोड़ पुणे जाने का फैसला किया था। उस समय उनके हाथ में मात्र 12 रुपए थे। खाकी सलवार-कमीज पहने पुणे की सड़कों पर ऑटो चलाने वाली शीला का नाम लिम्‍का बुक ऑफ वर्ल्‍ड रेकार्ड्स में दर्ज है।

कैसे की शुरुआत?

शीला ने बारहवीं तक की पढ़ाई की है। बारहवीं करने के बाद उन्होंने अपने मां-बाप का घर छोड़ पुणे जाना का फैसला किया था। उनके इस फैसले से ना तो शीला के मां-बाप खुश थे और ना ही साथ देने को तैयार। यहां तक कि उन्होंने शीला के फैसले का खूब विरोध किया। शीला के ऊपर फैमिली प्रेशर के अलावा सामाजिक प्रेशर भी खूब बनाया गया लेकिन इन सबके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। मात्र 12 रुपए लेकर वो घर से निकल पड़ी। खुद के ऊपर खूब मेहनत कर अपने स्किल्स को निखारा और बतौर ऑटो ड्राइवर अपनी जर्नी की शुरुआत की। छोटी-मोटी ऑटो राइड्स से जब मामूली आय शुरू होने लगी फिर शीला ने पैसा जोड़कर खुद एक ऑटो खरीदा। साथ ही स्लम एरिया में किराए का एक मकान लिया।

महिला ड्राइवर होने की वजह से परेशानियां भी उठाई

साल 1988 से लेकर 2001 तक शीला ने बतौर ऑटो ड्राइवर काम किया। 13 साल तक ऑटो चलाने के बाद जब तबीयत खराब रहने लगी फिर शीला ने ऑटो चलाना बंद किया। लेकिन अपने काम के दिन को याद करते हुए वो बताती हैं कि कैसे शुरुआत में उन्हें महिला होने की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ा।क्योंकि वो महिला थीं, इस वजह से लोग शुरुआत में पैसे (भाड़ा) नहीं देते थे। एक बार एक ट्रैफिक कांस्‍टेबल से उनकी बहस हुई, जिसके बाद पुलिस वाले ने उन पर हाथ उठाया। लेकिन शीला ने भी पीछे नहीं हटी, उस मुश्किल हालात का डंटकर सामान किया, जिसके बाद ऑटो यूनियन ने शीला को अपना समर्थन दिया।

घर से, समाज से बगावत करके अपनी दुनिया बदलने वाली शीला दावरे ने 13 साल तक अपने सपने को जिया। तबीयत खराब होने के बाद काम तो छोड़ दिया लेकिन महिलाओं के लिए कुछ करने की सपने को नहीं। फिलहाल वो अपनी पति शिरीष के साथ खुद की एक ट्रैवल कंपनी चलाती हैं। महिलाओं के लिए वो एक अकादमी खोलना चाहती हैं ताकि और महिलाओं को ऑटो रिक्‍शा चलाने का प्रशिक्षण दे सकें।

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