नयी दिल्ली, पांच नवंबर पूर्वी लद्दाख में सीमा पर चीन के साथ सात महीने से जारी गतिरोध के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत मतभेदों का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है लेकिन इसके साथ ही वह ‘एकपक्षवाद और आक्रामकता’ से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है और चाहे इसके लिए कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (एनडीसी)द्वारा आयोजित डिजिटल संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा, शांति के लिए युद्ध को रोकने की क्षमता हासिल करना महत्वपूर्ण है। यह संगोष्ठी एनडीसी की स्थापना की हीरक जयंती पर आयोजित की गई है।
उन्होंने कहा कि भारत मानता है कि मतभेदों को विवाद में तब्दील नहीं होना चाहिए और सीमा पर शांति और नियमों को कायम रखने के लिए हुए विभिन्न समझौतों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
सिंह ने देश के समक्ष मौजूद सुरक्षा चुनौतियां और सरकार कैसे भारत की युद्ध क्षमता को बढ़ाने का प्रयास कर रही है सहित रणनीतिक महत्व के विभिन्न मुद्दों पर बात की।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत सीमा पर दूसरी चुनौती का सामना कर रहा है। भारत शांतिपूर्ण देश है। हम मतभेदों को विवाद नहीं बनने देने में विश्वास करते हैं। हम विवादों को बातचीत के जरिये सुलझाने को महत्व देते हैं।’’
सिंह ने कहा, ‘‘हमारी सीमाओं पर शांति और धैर्य बनाए रखने के लिए किए गए समझौतों और प्रोटोकॉल का सम्मान करने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। हालांकि, भारत इसके साथ ही ‘एकपक्षवाद और आक्रामकता’ से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है और चाहे इसके लिए कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
रक्षा मंत्री की टिप्पणी सीमा पर गतिरोध को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के आठवीं दौर की पूर्वसंध्या पर आई है।
रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान के बारे में कहा कि वह आतंकवाद को राजकीय नीति के तौर पर इस्तेमाल करने पर ‘आमादा’ है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, हमने पाकिस्तान की प्रतिगामी नीति को उजागर करने और समान विचार वाले देशों के साथ काम करने में न केवल ठोस सफलता हासिल की है बल्कि पहले की तरह पुराने ढर्रे पर उसके काम करने के तरीके पर नियंत्रण की लगातार कोशिश की है ।’’
रक्षामंत्री ने कहा कि भारत ने साबित किया है जिस देश ने आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति की तरह इस्तेमाल किया है उसके निवारण के लिए अन्य विकल्प हैं जो पहले इस्तेमाल करने योग्य नहीं थे।
सिंह ने कहा कि सशस्त्र बलों ने भी हाल में ‘गंभीर चुनौतियों के बावजूद’ भारत की सीमाओं और हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की है, जो सुविचारित नीति और क्षमता का परिणाम है और आगे भी महामारी के बावजूद सैन्य अभियान की जिम्मेदारी जारी रखेंगे।
रक्षा सचिव अजय कुमार ने डिजिटल संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि भारत उत्तरी सीमा पर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में भारत की सैन्य शक्ति बढ़ाने और रक्षा क्षेत्र के साजो-सामान का घरेलू स्तर पर उत्पादन के लिए उठाए जा रहे कदमों का भी उल्लेख किया।
सिंह ने कहा, ‘‘ युद्ध रोकने की प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर के ही शांति सुनिश्चित की जा सकती है। हमने क्षमता विकास और स्वदेशीकरण के साथ प्रतिरोधी क्षमता निर्माण करने की कोशिश की है।’’
सिंह ने आजादी के बाद से भारत की अबतक की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रों के उदय और पतन से हमें मौलिक सीख मिली है कि शांति केवल शांति की इच्छा से नहीं आ सकती बल्कि युद्ध को रोकने की क्षमता से आती है।
उन्होंने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, शांति की इच्छा पर दूसरे द्वारा जवाब नहीं दिया जाता, तो यह जरूरी नहीं कि सुरक्षा, संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को लेकर विरोधाभासी विचारों वाली दुनिया में सौहर्द्रपूर्ण महौल बने।’’
सिंह ने उन प्रौद्योगिकीयों के प्रसार की चुनौतियों की भी चर्चा की जो उसके उपयोकर्ता को सृजनात्मक और विनाशक शक्ति से लैस कर सकते हैं।
रक्षामंत्री ने अमेरिका, जापान और रूस के साथ-साथ पड़ोसी देशों से भारत के द्विपक्षीय संबंधों पर भी बात की।
उन्होंने कहा, ‘‘आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान को छोड़कर , भारत ने अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुधारा है। हमने आपसी सम्मान और आपसी हित के आधार पर संबंधों को बढा़ने के लिए अपने मित्रों की मदद और समर्थन के लिए भारी निवेश किया है।’’
उन्होंने कहा कि भारत ने क्षेत्र और इसके परे देशों के साझा हित के लिए समान सोच वाले दोस्तों के साथ करीब संबंध और साझेदारी मजबूत की है।
सिंह ने कहा, ‘‘ हमारा अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध पहले से कहीं मजबूत है।’’
रक्षा मंत्री ने गत छह साल में देश के समक्ष भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए चार सिद्धांतों पर बनाई गई नीति को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि पहला सिद्धांत, बाहरी और आंतरिक खतरे से भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने की क्षमता, दूसरा, सुरक्षित और स्थिर माहौल ताकि भारत का आर्थिक विकास हो सके। तीसरी सीमा के परे हमारे लोगों और रक्ष हितों की सुरक्षा हो सके और चौथी वैश्विक और एक दूसरे से जुड़े विश्व में भरोसा।