दोषियों को मौत की सजा मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अदालत में कहा : किसी प्रकार की देरी नहीं की

By भाषा | Published: June 20, 2019 02:57 AM2019-06-20T02:57:07+5:302019-06-20T02:57:07+5:30

गृह विभाग ने अपने हलफनामे में कहा कि यरवडा कारा अधीक्षक को 19 जून 1917 को सूचित किया गया कि दोषियों की दया याचिकाएं राष्ट्रपति ने खारिज कर दी हैं ।

In the death sentence of the guilty, the Maharashtra government said in court: There is no delay | दोषियों को मौत की सजा मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अदालत में कहा : किसी प्रकार की देरी नहीं की

दोषियों को मौत की सजा मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अदालत में कहा : किसी प्रकार की देरी नहीं की

महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि 2007 के पुणे बीपीओ कर्मचारी के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दो दोषियों को मृत्युदंड की सजा पर फैसला करने और तामील करने में उसकी ओर से कोई ‘‘जानबूझकर या अनजाने में देरी’’ नहीं हुई है। पुणे की यरवडा जेल में बंद दोनों दोषियों ने याचिकायें दायर कर मौत की सजा पर तामील को रोकने का आग्रह किया है ।

इसके जवाब में राज्य के गृह विभाग और यरवडा कारा अधीक्षक ने अपना हलफनामा दायर किया है । दोनों आरोपियों को 24 जून को मौत की सजा दी जानी है । पुरूषोत्तम बोराटे और प्रदीप कोकाडे की ओर से दायर याचिकाओं में यह दावा किया गया है कि उनकी सजा पर तामील करने में ‘‘अत्यधिक देरी’’ उनके मौलिक अधिकारों का हनन है । उन्होंने उच्च न्यायालय से अपील की है कि वह उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दें । हलफनामे में सरकार ने कहा है कि यरवडा कारा अधीक्षक और कारा विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक की ओर से बार बार स्मरण पत्र भेजे जाने के बावजूद पुणे सत्र अदालत की ओर से वारंट जारी करने में देरी हुई ।

गृह विभाग ने अपने हलफनामे में कहा कि यरवडा कारा अधीक्षक को 19 जून 1917 को सूचित किया गया कि दोषियों की दया याचिकाएं राष्ट्रपति ने खारिज कर दी हैं । हलफनामे में कहा गया है, ‘‘यरवडा कारा अधीक्षक ने दोषियों को इस निर्णय के बारे में उसी दिन सूचित किया और संबंधित सत्र न्यायालय को पत्र लिखा, जिसमें दया याचिका के खारिज होने के बारे में जानकारी दी गयी और मौत की सजा की तामील के बारे में उचित आदेश देने का अग्रह किया गया ।’’

यरवडा कारा अधीक्षक और कारा विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक ने 19 जून 2017 से दिसंबर 2018 के बीच सत्र न्यायालय को कई चिठ्ठियां लिखी और उचित आदेश जारी करने का आग्रह किया । राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा है, ‘‘राज्य सरकार की ओर से ऐसी कोई देरी नहीं हुई है । न तो दोषियों को सूचित करने में और न ही केंद्र सरकार को दस्तावेज भेजने में किसी प्रकार की देरी हुई है ।’’

यरवडा कारा अधीक्षक की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि तत्कालीन जेलर को किसी प्रकार का दोष नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उन्होंने नियमों का पालन करते हुए पुणे सत्र अदालत को कई बार पत्र लिखा । इस बीच, केंद्र सरकार ने बुधवार को दायर हलफनामे में कहा कि गृह मंत्रालय को 18 मई 2016 को दोनों दोषियों की ओर से दायर की गई दया याचिकाएं प्राप्त हुई और दोषियों की उम्र, उनकी पृष्ठभूमि और अपराध में उनकी भूमिका तथा अन्य बातों पर विचार करते हुए 26 मई 2017 को निर्णय लिया गया। दोषियों के अधिवक्ता युग चौधरी ने दावा किया कि देश में यह पहला ऐसा मामला है जिसमें ऐसी असामान्य देरी हुई है ।

न्यायमूर्ति बी पी धर्माधिकारी की अगुवाई वाली खंडपीठ इस मामले में गुरूवार को भी सुनवाई करेगी । पुणे सत्र अदालत ने 10 अप्रैल को वारंट जारी करते हुए 24 जून को मौत की सजा दिये जाने की तिथि मुकर्रर की थी । मार्च 2012 में दोनों को 2007 में एक बीपीओ कर्मचारी का अपहरण, बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए पुणे की सत्र अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी । 

Web Title: In the death sentence of the guilty, the Maharashtra government said in court: There is no delay

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