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आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने बड़ी आंत के कैंसर का पता लगाने की कृत्रिम मेधा आधारित प्रणाली बनाई

By भाषा | Updated: March 4, 2021 20:54 IST

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गुवाहाटी, चार मार्च भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी (आईआईटीजी) के शोधकर्ताओं के एक दल ने दुनिया भर के प्रख्यात शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर स्वचालित कृत्रिम मेधा आधारित एक प्रणाली विकसित की है जो कोलोनोस्कोपी की छवियों का इस्तेमाल कर बड़ी आंत के कैंसर (कोलोरेक्टल कैंसर) का पता लगाएगी।

संस्थान द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक नेचर समूह की प्रतिष्ठित पत्रिका - ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में हाल में इस काम को प्रकाशित किया गया।

इसमें कहा गया कि आईआईटीजी के शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मानस कमल भूयन कर रहे थे।

पत्रिका में प्रकाशित लेख के सह-लेखकों में गुवाहाटी स्थित कॉटन विश्वविद्यालय की डॉ. कंगकना बोरा, जापान की आइची मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ. कुनिया कासुगई, अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित टेक्सास यूनिवर्सिटी के हेल्थ साइंस सेंटर के प्रोफेसर झांगमिंग झाओ तथा अमेरिकी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. सौरभ मलिक भी शामिल हैं।

भूयन ने कहा, “हमनें एक नई स्वचालित प्रणाली विकसित की है जो कोलोनोस्कोपी की तस्वीरों से सटीक व त्वरित तरीके से बड़ी आंत के कैंसर का पता लगाने में चिकित्सकों की मदद कर सकती है।”

उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रोक की पहचान में होने वाली देरी कम होगी तथा महत्वपूर्ण रूप से समय की बचत होगी जिसका उपयोग मरीज के रोक के प्रबंधन और उपचार रणनीति बनाने में हो सकेगा।

बयान के मुताबिक, शोध में तब भूयन की शोध छात्रा और अब कॉटन विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर कंगकना बोरा ने उनकी सहायता की। भूयन ने डॉ. कासुगई द्वारा तैयार वास्तविक कोलोनोस्कोपी तस्वीरों का विश्लेषण कृत्रिम मेधा आधारित कैंसर पहचान प्रणाली विकसित करने में की।

तस्वीरों के परीक्षण के दौरान विशेषज्ञों ने आकार, सतह की संरचना और उत्तक की असमान्य वृद्धि (पॉलीप्स) की जांच की और उन्हें विभिन्न श्रेणियों (नियोप्लास्टिक और नॉन-नियोप्लास्टिक) में वर्गीकृत किया।

कई संस्थानों वाले दल ने विभिन्न फिल्टरों का इस्तेमाल कर कृत्रिम मेधा एल्गोरिद्म का इस्तेमाल कर आकार, बनावट और रंग घटकों को निकाला।

इसके बाद अलग-अलग घटकों के योगदान के सांख्यिकी महत्व का आकलन किया गया जिसके बाद विशेषताओं का चयन, छह मानकों पर आधारित वर्गीकृत चयन तथा क्रॉस सत्यापन किया गया।

लेखकों ने अपने शोध-पत्र में कहा है, “हमारे व्यापक प्रयोग दिखाते हैं कि प्रस्तावित विधि आंत संबंधी पॉलिप की पहचान के मौजूदा विशेषता आधारित (परंपरागत) तरीके से बेहतर है।”

अपनी प्रणाली की सटीकता को परखने के लिये उन्होंने अपने काम की चार पुराने गहन अध्ययन मॉडलों के साथ तुलना की और पाया कि उनकी विधि अन्य से बेहतर है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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