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संक्रमण के बीच बढ़ती मांग देख आईआईएसईआर भोपाल ने बनाया सस्ता ऑक्सीजन कन्संट्रेटर

By भाषा | Updated: April 25, 2021 17:33 IST

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नयी दिल्ली, 25 अप्रैल भोपाल में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच चिकित्सीय ऑक्सीजन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये एक सस्ता ऑक्सीजन कन्संट्रेटर विकसित किया है।

उन्होंने कहा कि इस उपकरण की लागत 20 हजार से भी कम है और यह 3 लीटर प्रति मिनट की दर से 93 से 95 प्रतिशत तक शुद्ध ऑक्सीजन दे सकता है।

शोधकर्ताओं के दल के मुताबिक, फिलहाल उपलब्ध उपकरणों की लागत 60 से 70 हजार रुपये है और इसे महामारी की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के समाधान के तौर पर विकसित किया गया है।

आईआईएसईआर भोपाल के निदेशक शिव उमापति ने कहा, “ऑक्सीकॉन नाम का यह उपकरण ‘ओपन-सोर्स’ प्रौद्योगिकी और सामग्री का इस्तेमाल करते हुए विकसित किया गया है…एक बार मंजूरी मिलने के बाद इसकी वहनीयता के कारण छोटे गांवों से लेकर शहर तक कहीं भी इसका उपयोग किया जा सकता है।”

ओपन सोर्स प्रौद्योगिकी एक ऐसे सॉफ्टवेयर पर आधारित होती है जो उपयोग,वितरण और बदलाव के लिये स्वतंत्र होती है और इसकी लागत कम होती है।

उमापति ने कहा, “महामारी की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर का प्रकोप बहुत ज्यादा है। इसका प्रसार बहुत ज्यादा है और कई लोगों को आपात ऑक्सीजन सहायता की जरूरत पड़ रही है। इसलिये, देश भर में अस्पतालों को ऑक्सीजन सिलेंडरों और कंसन्ट्रेटरों की जरूरत है और यह मांग थोड़े समय में बहुत तेजी से बढ़ी है।”

शोधकर्ताओं का कहना है कि विकसित किया गया उपकरण छोटा, एक जगह से दूसरे जगह ले जाने योग्य और आसानी से कहीं भी फिट किये जाने लायक है।

आईआईएसईआर भोपाल में विद्युत अभियांत्रिकी और कंप्यूटर विज्ञान के सहायक प्रोफेसर मित्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि इसमें दो कंप्रेसर होते हैं जो हवा में मौजूद हवा लेकर उन्हें जियोलाइट नामक पदार्थ से भरी दो वाहिकाओं में अधिकतम दबाव के साथ गुजारते हैं। वैकल्पिक चक्रों में इन दोनों वाहिकाओं का इस्तेमाल किया जाता है और इसके लिये विद्युतीय तरीके से नियंत्रित वाल्व का प्रयोग किया जाता है जिससे यह प्रक्रिया स्वचालित होती है और निर्बाध ऑक्सीजन मिलती है।

उन्होंने कहा, “जियोलाइट हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित कर लेता है और वापस हवा में छोड़ देता है, इससे निकास द्वार पर हवा में ऑक्सीजन की सांद्रता बढ़ जाती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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