"साधु, सन्यासी या गुरु सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि बनाने लगे परिणाम विनाशकारी होंगे, नहीं दे सकते इसकी इजाजत", दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: June 1, 2024 16:39 IST2024-06-01T16:36:15+5:302024-06-01T16:39:39+5:30
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि साधु, बाबा और गुरु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी जाती है तो इससे बड़े परिणाण विनाशकारी होंगे।

फाइल फोटो
नई दिल्ली:दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि यदि प्रत्येक साधु, बाबा और गुरु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने और इसे निजी उपयोग की अनुमति दी जाती है तो इससे बड़े सार्वजनिक हितों को नुकसान होगा और परिणाण विनाशकारी होंगे।
हाईकोर्ट ने कहा कि भगवान शिव के भक्त नागा साधुओं को सांसारिक मामलों से पूरी तरह अलग होकर जीवन जीने का आदेश दिया गया है। इस कारण से उनके नाम पर संपत्ति का अधिकार मांगना उनकी मान्यताओं और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा, “हमारे देश में हमें विभिन्न हिस्सों में हजारों साधु, बाबा, फकीर या गुरु मिल सकते हैं और यदि प्रत्येक को सार्वजनिक भूमि पर एक मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी जाती है और इस तरह सार्वजनिक जमीन का उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिलता रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि कुछ निहित स्वार्थी समूहों द्वारा बड़े सार्वजनिक हित को खतरे में डाला जाएगा और इसके परिणाम विनाशकारी परिणाम होंगे।”
हाईकोर्ट की यह बेहद कड़ी टिप्पणी महंत नागा बाबा शंकर गिरि द्वारा उनके उत्तराधिकारी के माध्यम से दायर एक याचिका को खारिज करते हुए की गई। जिस याचिका में दिल्ली के त्रिवेणी घाट, निगमबोध घाट पर नागा बाबा भोला गिरि के मंदिर की संपत्ति का सीमांकन करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि दिल्ली विशेष कानून अधिनियम द्वारा निर्धारित 2006 की समय सीमा से पहले ही उसने संपत्ति पर कब्जा कर लिया है। याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि फरवरी 2023 में दिल्ली सरकार के बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने संपत्ति के आसपास की विभिन्न झुग्गियों और अन्य इमारतों को ध्वस्त कर दिया, जिसके कारण उन्हें मंदिर के ध्वस्त होने का खतरा दिखाई दे रहा है।
अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें कोई योग्यता नहीं है और याचिकाकर्ता के पास संपत्ति का उपयोग जारी रखने और कब्जा करने का कोई अधिकार, स्वामित्व या हित नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा, "यह स्पष्ट है कि वह एक रैंक ट्रेस-पासर है और केवल इस तथ्य के लिए कि वह 30 साल या उससे अधिक समय से याचिकाकर्ता खेती कर रहा है, उसे विषय संपत्ति पर कब्जा जारी रखने के लिए कोई कानूनी अधिकार या हित नहीं प्रदान होता है।"
जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने टिन शेड और अन्य सुविधाओं के साथ दो कमरों का निर्माण किया है, इसके अलावा श्रद्धेय बाबा का मंदिर भी है, जिनकी मृत्यु 1996 में हो गई थी लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह बताता हो कि यह स्थान ऐतिहासिक महत्व या पूजा के लिए या श्रद्धेय मृत बाबा की प्रार्थना करने के लिए जनता को समर्पित है।“