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बच्ची का हाथ पकड़ना, अपने गलत इरादे जाहिर करना यौन उत्पीड़न नहीं: बंबई उच्च न्यायालय की न्यायाधीश

By भाषा | Updated: January 28, 2021 18:36 IST

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नागपुर (महाराष्ट्र),28 जनवरी बंबई उच्च न्यायालय की एक न्यायाधीश ने एक फैसले में कहा है कि पांच साल की एक बच्ची का हाथ पकड़ना और उसके समक्ष अपने गलत इरादे जाहिर करना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत ‘‘यौन उत्पीड़न’’ नहीं है।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने 50 वर्षीय एक व्यक्ति की एक अपील पर 15 जनवरी को अपने फैसले में यह टिप्पणी की थी। इस व्यक्ति ने पांच साल की एक बच्ची के यौन उत्पीड़न करने और छेड़छाड़ करने के आरोप में दोषी ठहराए जाने संबंधी सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।

गौरतलब है कि न्यायाधीश ने इस फैसले के चार दिनों बाद पॉक्सो कानून के तहत 39 वर्षीय एक व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि बच्ची की छाती को उसके कपड़ों के ऊपर से स्पर्श करने को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। हालांकि, उन्हें अपने इस फैसले को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा है।

न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने 19 जनवरी को सुनाए गये उक्त फैसले में 39 वर्षीय एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि बच्ची के शरीर को कपड़ों के ऊपर से गलत इरादे से स्पर्श करने को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता।

उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने बुधवार को अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल द्वारा यह मामला पेश किये जाने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।

वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि बंबई उच्च न्यायालय का यह फैस्ला बहुत ही परेशान करने वाला है।

वहीं, लिबनस कुजूर (50) को अक्टूबर 2020 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं--354(1) (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) और 448(घर में जबरन घुसना)-- तथा पॉक्सो कानून की धाराओं तहत दोषी ठहराया गया था और पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन ने यह साबित कर दिया है कि आरोपी ने पीड़िता के घर में उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने या यौन उत्पीड़न करने के मकसद से प्रवेश किया था, लेकिन वह (अभियोजन) आरोपी के ‘यौन हमला करने’ या ‘‘इरादतन या जानबूझ कर यौन हमला करना’’ के आरोपों को साबित नहीं कर पाया है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पीड़िता का हाथ पकड़ने या उसके समक्ष गलत इरादे जाहिर करना, जैसा कि अभियोजन की गवाह (पीड़िता की मां ने देखा था), इस अदालत की राय में यौन हमले की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है। ’’

अदालत ने कहा कि मामले के तथ्य आरोपी की आपराधिक जवाबदेही तय करने के लिए अपर्याप्त हैं।

अभियोजन के अनुसार कुजूर 12 फरवरी 2018 को बच्ची के घर उस वक्त गया था, जब उसकी मां घर पर नहीं थी। जब मां घर लौटी, तो उसने देखा की आरोपी उनकी बच्ची का हाथ पकड़े हुए है वह आपत्तिजनक स्थिति में था।

पीड़िता की मां ने निचली अदालत में अपनी गवाही में कहा था कि उनकी बेटी ने उन्हें बताया था कि आरोपी ने उसे अपने साथ सोने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय ने पॉक्सो कानून की धारा आठ और दस के तहत आरोपी की दोषसिद्धि खारिज कर दी थी लेकिन अन्य धाराओं के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी।

अदालत ने यह भी कहा था कि आरोपी को यदि किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है तो उसे रिहा कर दिया जाए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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