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दलित के पकाए भोजन का छात्र कर रहे बहिष्कार! मिड-डे मील कॉन्ट्रैक्टर का दावा, अधिकारी बता रहे हैं कुछ और वजह

By विनीत कुमार | Updated: August 5, 2022 08:04 IST

गुजरात के मोरबी जिले में एक गांव के स्कूल में मिड-डे मील तैयार करने वाले कॉन्ट्रैक्टर ने दावा किया है कि छात्र दलितों द्वारा पकाए भोजन का बहिष्कार कर रहे हैं।

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ठळक मुद्देमोरबी जिले में एक गांव के प्राथमिक विद्यालय के कॉन्ट्रैक्टर ने किया है दावा।कॉन्ट्रैक्टर दलित समुदाय से आता है और मिड-डे मील का भोजन उसके परिवार के सदस्यों द्वारा तैयार किया जाता है।वहीं, अधिकारियों के अनुसार ये जाति का मुद्दा नहीं है बल्कि छात्र खुद अपना लंच बॉक्स लेकर स्कूल आ रहे हैं।

अहमदाबाद: गुजरात के मोरबी जिले में एक गांव के प्राथमिक विद्यालय के मिड-डे मील कॉन्ट्रैक्टर ने दावा किया है कि स्कूल के ओबीसी समुदाय के छात्र दलितों द्वारा पकाए भोजन का बहिष्कार कर रहे हैं। दावा करने वाले कॉन्ट्रैक्टर दलित समुदाय से आते हैं और भोजन उनके परिवार के सदस्यों द्वारा तैयार किया जाता है। मामला सामने आने के बाद गुरुवार को शिक्षा और राजस्व विभागों के अधिकारियों ने प्राथमिक विद्यालय के माता-पिता और शिक्षकों के साथ बैठक की।

मीडिया में आई खबरों के बाद मोरबी तालुका के दो शिक्षा निरीक्षकों और मोरबी के एमडीएम के डिप्टी मामलातदार की एक टीम ने स्कूल का दौरा किया।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मोरबी के प्रभारी जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (डीपीईओ) भारत विद्जा ने बताया, 'जिला कलेक्टर ने एक डिप्टी मामलातदार भी भेजा था। टीम ने एमडीएम ठेकेदार की उपस्थिति में शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बैठक की और एक रिपोर्ट जमा की है।

...तो यह जाति का मुद्दा नहीं?

विद्जा ने कहा कि टीम और शिक्षकों ने माता-पिता को अपने बच्चों को सरकार द्वारा परोसे जाने वाले भोजन खाने के लिए मनाने की कोशिश की। उन्होंने कहा- 'जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार यह जातिगत पूर्वाग्रह का मुद्दा नहीं है। यह सिर्फ इतना है कि बच्चे स्कूल में दोपहर का भोजन नहीं करने का विकल्प चुन रहे हैं।'

जांच समिति के एक सदस्य ने कहा कि स्कूल में करीब 153 छात्र हैं और उनमें से 138 गुरुवार को मौजूद थे। सदस्य ने कहा, 'बच्चे अपना लंचबॉक्स ले जाते हैं और स्कूल में मध्याह्न भोजन खाने के बजाय घर का बना खाना पसंद करते हैं।'

मिड-डे मील सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को पौष्टिक भोजन देकर बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने की एक सरकारी योजना है। समिति के सदस्य ने कहा, 'एक छात्र के लिए स्कूल में परोसा गया खाना खाना अनिवार्य नहीं है…स्कूल शिक्षक और एमडीएम ठेकेदार की उपस्थिति में अभिभावकों के साथ बैठक में हमने पूछा कि क्या उन्हें भोजन की गुणवत्ता और मात्रा को लेकर कोई शिकायत है… उन सभी ने नहीं कहा।'

अधिकारियों ने कहा कि गांव में ओबीसी (अन्य पिछड़ी जाति) समुदाय का वर्चस्व है, जबकि इसमें पांच दलित परिवार भी हैं।

मिड-डे मील के ठेकेदार का क्या है दावा

दलित कॉन्ट्रैक्टर के पति के अनुसार, 'गर्मी की छुट्टी के बाद जब स्कूल फिर से खुला, तो प्रिंसिपल ने मेरी पत्नी को 100 छात्रों के लिए खाना बनाने के लिए कहा लेकिन अनुसूचित जाति के केवल सात छात्र ही भोजन के लिए पहुंचे। दूसरे दिन प्रिंसिपल ने 50 छात्रों के लिए खाना बनाने को कहा...लेकिन सिर्फ दलित छात्रों ने ही उसे खाया।'

उन्होंने दावा किया कि कुछ देर बाद दलित छात्रों ने भी खाना बंद कर दिया और ठेकेदार को मजबूरन जुलाई के दूसरे सप्ताह से एमडीएम खाना बनाना बंद करना पड़ा। उसने साथ ही कहा, इससे पहले जब एक ओबीसी व्यक्ति कॉन्ट्रैक्टर था तो ऐसा नहीं होता था…एक स्कूल में ऐसा रवैया अच्छा नहीं है जबकि एक दलित महिला हमारी राष्ट्रपति है। इसलिए मैंने मामलातदार और पुलिस से शिकायत की। उन्होंने माता-पिता को समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

हालांकि गांव के सरपंच ने इस बात से इनकार किया कि बच्चे इसलिए भोजन का बहिष्कार कर रहे हैं क्योंकि एक दलित को खाना बनाने का ठेका मिला है। उन्होंने कहा, 'पहले भी बहुत सारे बच्चे स्कूल में खाना नहीं खा रहे थे…बच्चे कहते हैं कि अगर उन्हें पसंद आया तो वे दोपहर का भोजन खा लेंगे। हम उन्हें केवल स्कूल का खाना खाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।'

टॅग्स :गुजरातमिड डे मील
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