Godhra Kand: जब 27 फरवरी का दिन गोधरा की दुखद घटना का गवाह बना, जानें पूरा मामला
By अनुराग आनंद | Published: February 27, 2021 09:25 AM2021-02-27T09:25:14+5:302021-02-27T09:27:52+5:30
आज ही के दिन गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक कोच में उन्मादी लोगों द्वारा आग लगाए जाने से करीब 59 लोगों की मौत हो गई थी।
नई दिल्ली: आज 27 फरवरी का दिन गोधरा कांड नाम के एक दुखद घटना के साथ इतिहास के पन्नों में दर्ज है। दरअसल, 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच 6 में उन्मादी भीड़ ने आग लगा दी थी। इस भीषण अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई।
मरने वालों में से 27 महिलाएं व 10 बच्चे शामिल थे। इस घटना में करीब 48 घायल यात्रियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अहमदाबाद को जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन से चली ही थी कि किसी ने चेन खींचकर गाड़ी रोक ली और फिर पथराव के बाद ट्रेन के एक डिब्बे को आग के हवाले कर दिया गया।
ट्रेन में सवार लोग हिंदू तीर्थयात्री थे और अयोध्या से लौट रहे थे-
ट्रेन में सवार लोग हिंदू तीर्थयात्री थे और अयोध्या से लौट रहे थे घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और जानमाल का भारी नुकसान हुआ। हालात इस कदर बिगड़े कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जनता से शांति की अपील करनी पड़ी।
कम से कम 2,000 कारसेवक विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर घर लौट रहे थे-
साबरमती एक्सप्रेस मुजफ्फरपुर से चलकर अहमदाबाद के रास्ते में थी। कम से कम 2,000 कारसेवक विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम पूर्णाहुति महायज्ञ में भाग लेने के बाद अपने घर लौट रहे थे। यह यज्ञ राम मंदिर निर्माण कार्यक्रम का हिस्सा था। कारसेवकों का यह जत्था अयोध्या में इस ट्रेन में सवार हुए थे।
घटना के तुरंत बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जांच आयोग का गठन किया-
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गोधरा कांड के तुरंत बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग में न्यायमूर्ति जी टी नानावती और न्यायमूर्ति केजी शाह शामिल थे। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मारे गए 59 लोगों में से ज्यादातर कारसेवक थे जो उत्तर प्रदेश के अयोध्या से लौट रहे थे।
कांग्रेस ने यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक अलग जांच आयोग बनाया-
कांग्रेस ने यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक अलग जांच आयोग बनाया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया-
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने न्यायमूर्ति यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक अलग जांच आयोग का गठन किया, जिसने मार्च 2006 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस घटना को एक दुर्घटना बताया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को असंवैधानिक और अमान्य करार दिया।
नानावती-शाह आयोग की अंतिम रिपोर्ट में घटना को साजिश बताया गया-
बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष जांच दल का गठन किया। आयोग की जांच पूरी करने से पहले मार्च 2008 में जस्टिस केजी शाह का निधन हो गया। उनका पद न्यायमूर्ति अक्षय एच मेहता ने संभाला। न्यायमूर्ति नानावती और न्यायमूर्ति अक्षय मेहता ने नानावती-शाह आयोग की अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए ट्रेन जलाने की घटना को एक साजिश बताया।
इस मामले में अदालत ने 11 को मौत की सजा और 20 आजीवन कारावास की सजा सुनाई-
इस विभत्स मामले में एक विशेष एसआईटी अदालत ने 1 मार्च, 2011 को 31 लोगों को दोषी ठहराया, जिनमें से 11 को मौत की सजा और 20 आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अदालत ने मामले में 63 लोगों को भी बरी कर दिया। एसआईटी अदालत ने अभियोजन पक्ष के आरोपों के साथ सहमति जताई कि यह अनियोजित भीड़ के उत्पीड़न की घटना नहीं थी बल्कि इस घटना को एक साजिश के तहत अंजाम दिया गया था। 31 दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं, आपराधिक साजिश, हत्या और हत्या के प्रयास से संबंधित दोषी ठहराया गया था।