बहुसंख्यकों के विचार से मेल खाने पर ही वाक् स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए : अदालत

By भाषा | Published: November 27, 2021 06:47 PM2021-11-27T18:47:17+5:302021-11-27T18:47:17+5:30

Freedom of speech should not be exercised only when it agrees with majority view: HC | बहुसंख्यकों के विचार से मेल खाने पर ही वाक् स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए : अदालत

बहुसंख्यकों के विचार से मेल खाने पर ही वाक् स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए : अदालत

नयी दिल्ली, 27 नवंबर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब के प्रकाशन, वितरण और बिक्री पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बहुसंख्यकों के विचारों से मेल खाने पर ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये और असहमति का अधिकार जीवंत लोकतंत्र का सार होता है।

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें खुर्शीद की किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या : नेशनहुड इन ओल्ड टाइम्स’ पर दूसरों की आस्था को चोट पहुंचाने का दावा किया गया था।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत संविधान प्रदत अधिकारों को अप्रिय होने की आशंका के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता या उनसे वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर रचनात्मक आवाजों का गला घोंट दिया गया या बौद्धिक स्वतंत्रता को दबा दिया गया तो विधि के शासन से संचालित होने वाला लोकतंत्र गंभीर खतरे में पड़ जाएगा।

अपने छह पन्नों के फैसले में न्यायाधीश ने वाल्टेयर का उद्धरण दिया, ‘‘आप जो कह रहे हैं, मैं उससे बिलकुल भी इत्तेफाक नहीं रखता, लेकिन मैं अंतिम सांस तक आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करूंगा।’’ उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ‘‘पूरे जोश के साथ रक्षा की जानी चाहिए’’, जबतक कि वह संवैधानिक या वैधानिक पाबंदियों के तहत नहीं आता हो।

अदालत ने 25 नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘‘असहमति का अधिकार या समसामयिक मुद्दों और ऐतिहासिक घटनाओं पर विपरीत विचार रखना या उसे व्यक्त करना जीवंत लोकतंत्र का सार है। हमारे संविधान द्वारा दिए गए मौलिक और बहुमूल्य अधिकारों पर सिर्फ किसी के लिए अप्रिय होने की आशंका के आधार पर पाबंदी नहीं लगायी जा सकती और न ही उससे वंचित किया जा सकता है।’’

अदालत ने रेखांकित किया कि उसके समक्ष पूरी किताब पेश नहीं की गई है और पूरा मुकदमा सिर्फ एक अध्याय के कुछ पैराग्राफ पर आधारित है।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि किताब के कुछ हिस्से ‘‘हिन्दू समुदाय को उत्तेजित कर रहे हैं’’, जिससे देश की सुरक्षा, शांति और सौहार्द को खतरा पैदा हो सकता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि किताब के अध्याय ‘द सैफरॉन स्काई’ में हिन्दुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे कट्टरपंथी समूहों से की गई है, जो शांति भंग कर सकती है।

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