टिकट की चाह में भाजपा में शामिल हुए थे चार निर्दलीय विधायक, टिकट नहीं मिली तो भाजपा छोड़ फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे मैदान में
By बलवंत तक्षक | Published: October 10, 2019 05:36 AM2019-10-10T05:36:59+5:302019-10-10T05:36:59+5:30
विधानसभा में पहुंचने की चाह रखने वाले इन विधायकों को लगा कि उनके साथ भाजपा ने धोखा किया है. इन्हें अपने-अपने इलाकों में अपनी पैठ का भरोसा है, इसलिए टिकट कटते ही यह फिर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आ गए.
हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनावों में जीते चारों निर्दलीय विधायक एक बार फिर वहीं आ खड़े हुए हैं, जहां से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्र शुरू की थी. विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले यह चारों विधायक अपने पदों से इस्तीफे देकर भाजपा में शामिल हुए थे. इन सब को उम्मीद थी कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा उन्हें टिकट दे देगी, लेकिन जब उम्मीदवारों की सूची जारी हुई तो इनमें से किसी के भी नाम उसमें शामिल नहीं किए गए थे.
फिर से विधानसभा में पहुंचने की चाह रखने वाले इन विधायकों को लगा कि उनके साथ भाजपा ने धोखा किया है. इन्हें अपने-अपने इलाकों में अपनी पैठ का भरोसा है, इसलिए टिकट कटते ही यह फिर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आ गए. इनका एकमात्र मकसद भाजपा को पीछे धकेल कर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधना है.
पुंडरी के ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां पिछले 23 साल से किसी पार्टी का कोई उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर पाया है. पुंडरी में 1996 से निर्दलीय उम्मीदवार ही जीत का परचम फहराते रहे हैं. निर्दलीय
उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे दिनेश कौशिक ने यहां से 2005 और 2014 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. भाजपा ने जब इस क्षेत्र से वेदपाल को उम्मीदवार घोषित कर दिया तो बिना देर किए कौशिक ने पार्टी को अलविदा कह दिया और एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोगों के बीच आ गए.
समालखा क्षेत्र से पिछले चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते रविंद्र मछरौली भी टिकट की खातिर भाजपा में शामिल हुए थे. भाजपा ने जब पिछली बार हार गए शशिकांत कौशिक पर एक बार फिर दांव लगाया तो मछरौली ने पार्टी छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही चुनाव लड़ना ठीक समझा. सफीदों क्षेत्र से पिछले चुनावों में जीते जसबीर देशवाल ने भी चुनाव लड़ने के लिए भाजपा छोड़ दी है. देशवाल थोड़े अर्से पहले ही विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे. भाजपा ने जब कांग्रेस से आये पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य को टिकट दे दिया तो देशवाल फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर गए.
मुस्लिम बहुल क्षेत्र पुन्हाना में भी ऐसा ही हुआ है. पिछले चुनावों में पुन्हाना से रईस खान निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे. भाजपा सरकार ने उन्हें हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की जिम्मेदारी भी दी थी. टिकट की चाह में रईस खान विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा में आ गए थे, लेकिन भाजपा उम्मीदवारों की सूची में अपनी जगह महिला उम्मीदवार नौक्षम चौधरी का नाम देखा तो उन्होंने फौरन भाजपा छोड़ दी और एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया.
विधानसभा में पहुंचने की इच्छा ही इन चारों निर्दलीय विधायकों को भाजपा में ले गई थी और जब इनमें से किसी को भी टिकट नहीं मिला तो विधायक बनने की चाह ही इन्हें भाजपा से बाहर ले आई. कभी इधर, कभी उधर होने वाले इन चारों निर्दलीय विधायकों पर पुंडरी, समालखा, सफीदों और पुन्हाना की जनता इस बार भी भरोसा जाहिर करेगी या नहीं, यह 24 अक्तूबर को साफ हो जाएगा.