सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस कृष्ण मुरारी ने यूसीसी विवाद पर कहा, "लोकतंत्र में बहुमत का दबाव होता है लेकिन फैसले समावेशी होने चाहिए"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 22, 2023 12:37 PM2023-08-22T12:37:19+5:302023-08-22T12:42:05+5:30
सुप्रीम कोर्ट से इस महीने रिटायर हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर कहा कि यह बेहद गंभीर मुद्दा है और इस पर कोई भी निर्णय लेने से पहले जनता के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से इस महीने रिटायर हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर कहा कि यह बेहद गंभीर मुद्दा है और इस पर कोई भी निर्णय लेने से पहले जनता के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। लगभग 42 वर्षों तक कानून की क्षेत्र में सेवा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस मुरारी ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं की लोकतंत्र में बहुमत की इच्छा होती है कि सारे निर्णय उनके हिसाब से लिये जाए लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं होना चाहिए कि अल्पसंख्यकों की वैचारिक अवहेलना हो।
समाचार वेबसाइट द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से यूसीस समेत कई मुद्दों पर बात करते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि यूसीसी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी विचारों को रिकॉर्ड में रखा जाना बेहद आवश्यक है और संसद द्वारा यूसीसी से संबंधित कोई कानून लाने से पहले उन विचारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विधि आयोग यूसीसी के मसले पर पहले से ही जनता से प्रक्रिया मांग रहा है और उसने जनता की राय जानने के लिए तारीख भी बढ़ा दी है। यूसीसी पर कोई भी कानून परामर्श से तय हो और उसमे समावेशी प्रक्रिया का शामिल किया जाना बेहद आवश्यक है।
पूर्व जस्टिस मुरारी ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता या संविधान के तहत प्रदत्त कोई भी मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं है। यह सभी कुछ प्रतिबंधों के अधीन है। हां, इस बात में कोई शक नहीं कि देश में सभी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है। लेकिन अगर किसी कारण से ऐसी स्थिति बनने लगे कि धार्मिक आजादी बड़े पैमाने पर समाज में हस्तक्षेप करने लगती है तो इस पर विचार करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस कृष्ण मुरारी ने यूसीसी के अलावा कॉलेजियम सिस्टम पर लग रहे आरोपों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि चूंकि कॉलेजियम सिस्टम में सारी जानकारी जनता के लिए उपलब्ध नहीं है, इसलिए जनमानस में ऐसी धारणा बनी है कि कॉलेजियम प्रणाली अपारदर्शी है।
उन्होंने इस मसले को उदाहरण के साथ समझाते हुए कहा कि मान लीजिए कि यदि कॉलेजियम दो नामों पर विचार करता है और उनमें से किसी एक के नाम की सिफारिश करता है और उसके बाद यदि वह दूसरे नाम की शिफारिश क्यों नहीं की। यह बताना शुरू कर दे तो उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा के बारे में सोचें, जिसके नाम की सिफारिश न की गई हो। इस कारण से कॉलेजियम बैठक की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है।