क्या आपको पता है पश्चिम बंगाल के कुछ गांव 18 अगस्त को मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस, आइए जानते हैं ऐसा क्यों
By दीप्ती कुमारी | Updated: August 18, 2021 08:46 IST2021-08-18T08:42:30+5:302021-08-18T08:46:21+5:30
संपूर्ण भारत 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है लेकिन पश्चिम बंगाल के कुछ गांव ऐसे है , जहां आज भी 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसके पीछे पाकिस्तान एक बड़ा कारण रहा है ।

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया
कोलकाता : भारत में 15 अगस्त को आजादी दिवस के रूप में मनाया जाता है । इश दिन हमें अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी लेकिन क्या आपको पता है बंग्लादेश की सीमा से लगे पश्चिम बंगाल के कई गांव 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं । इस लिस्ट बंगाल के कई गांव शामिल है ।
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के नदिया के कुछ क्षेत्र उन क्षेत्रों में से हैं जो स्वतंत्रता के दौरान विवादित थे, जिसके परिणामस्वरूप वे देश के बाकी हिस्सों में आधिकारिक तौर पर इस 15 अगस्त की बजाय 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते आए हैं ।
दो दिन देर से मिली आजादी
यह क्षेत्र हर साल स्वतंत्रता दिवस 18 अगस्त को ही मनाते रहे हैं । हालांकि इन समारोहों के साथ कोई सरकारी संबद्धता नहीं है । जानकारी के अनुसार विभाजन के दौरान बंगाल के कई सीमावर्ती इलाके विवादित थे । उदाहरण के लिए, 15 अगस्त 1947 को जब भारत को स्वतंत्र घोषित किया गया था, तब दो दिनों के लिए बोंगांव तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था । इस दो दिनों के फर्क के कारण यह क्षेत्र अपना अलग स्वतंत्रता दिवस मनाते आए हैं ।
बोनगांव के अलावा, नादिया जिले के अन्य शहरों - राणाघाट और कृष्णानगर को भी हर साल 18 अगस्त को तिरंगा फहराने के लिए जाना जाता है। नदिया जिले की अन्य तीन बस्तियां - मेहरपुर, चुडानागा और कुश्तिया - अब बांग्लादेश का हिस्सा हैं। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, नदिया जिले की बस्तियों को बांग्लादेश में मिलाए जाने का विरोध भी किया गया था क्योंकि यह हिंदू बहुल क्षेत्र था । 17 अगस्त, 1947 की रात को इन क्षेत्रों को भारत का हिस्सा घोषित किया गया था।
एक अधिकारी ने कहा, "रानाघाट शहर में हर साल 18 अगस्त को आसपास के गांवों में अन्य छोटे कार्यक्रमों के साथ एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है । कुछ विवादों के कारण नादिया के बड़े हिस्से को शुरू में पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे भारतीय मुख्य भूमि में शामिल कर लिया गया।"