जांच अधिकारी से निष्पक्षता की उम्मीद, हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें: न्यायालय

By भाषा | Updated: November 22, 2021 22:52 IST2021-11-22T22:52:31+5:302021-11-22T22:52:31+5:30

Expect fairness from investigating officer, avoid over-zealousness while making murder case: Court | जांच अधिकारी से निष्पक्षता की उम्मीद, हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें: न्यायालय

जांच अधिकारी से निष्पक्षता की उम्मीद, हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें: न्यायालय

नयी दिल्ली, 22 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पुलिस अधिकारियों की मानसिकता में लचीलापन लाने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी से निष्पक्ष रूप से जांच करने की उम्मीद की जाती है और आरोपी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के मामले को हत्या का मामला ‘‘बनाने में अति उत्साही’’ नहीं होना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सजा की भूमिका और गंभीरता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत गैर इरादतन हत्या और हत्या के तहत अपराधों के लिए काफी भिन्न है क्योंकि पहले के मामले में अपराध करने का इरादा गायब है।

शीर्ष अदालत द्वारा जांच अधिकारियों की भूमिका और आपराधिक मामलों से संबंधित जांच से संबंधित टिप्पणियां, एक हत्या के मामले में कई आरोपी व्यक्तियों को बरी करते हुए एक फैसले में की गई हैं।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने एक फैसले में कहा, ‘‘यह उसका (जांच अधिकारी) प्राथमिक कर्तव्य है कि वह संतुष्ट हो कि कोई मामला गैर इरादतन हत्या के अंतर्गत आएगा कि हत्या की श्रेणी में। जब पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हों तो उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए मामला तैयार करने में अति उत्साही नहीं होना चाहिए।’’

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने 42 पन्नों के फैसले में कहा कि जांच अधिकारी की मानसिकता में लचीलापन लाने की जरूरत है क्योंकि ऐसा पुलिसकर्मी अदालत का एक अधिकारी भी होता है और उसका कर्तव्य सच्चाई का पता लगाना और अदालत को सही निष्कर्ष पर पहुंचाने में मदद करना है।

पीठ ने कहा कि जब भी कोई मौत होती है तो एक पुलिस अधिकारी से सभी पहलुओं को कवर करने की अपेक्षा की जाती है और इस प्रक्रिया में, हमेशा यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि क्या अपराध आईपीसी की धारा 300 या धारा 299 आईपीसी के तहत आएगा।

शीर्ष अदालत हत्या के एक मामले में दोषियों की अपील पर सुनवाई कर रही थी। मामले में दो अलग-अलग सुनवाई हुई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, राजस्थान में भूमि विवाद के कारण 18 जुलाई 1989 को तीन व्यक्तियों - लड्डूराम, मोहन और बृजेंदर की हत्या कर दी गई थी। दो अलग-अलग सुनवाई हुई और पहले अवसर पर, निचली अदालत ने दो लोगों को बरी कर दिया और पांच आरोपियों को दोषी ठहराया और अपील पर उच्च न्यायालय ने अन्य चार की दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए एक और आरोपी को बरी कर दिया। बाद में, 10 और आरोपियों के नाम जोड़े गए और उसी घटना पर दूसरी बार मुकदमा शुरू किया गया।

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