जम्मू कश्मीर के बंटवारे और राज्य का दर्जा छीन लिए जाने के करीब 47वें दिनों के बाद राज्य सरकार ने आनन-फानन में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष, तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके तथा वर्तमान में श्रीनगर से चुने गए सांसद डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला पर जन सुरक्षा अधिनियम लागू कर यह जरूर साफ कर दिया कि कश्मीर के हालात वैसे नहीं है जैसी छवि सरकारी प्रवक्ता द्वारा लगातार 46 दिनों से पेश की जा रही है बल्कि उससे भी बदतर है।
हालांकि डॉक्टर अब्दुल्ला को 4 व 5 अगस्त की रात्रि से ही उनके श्रीनगर निवास पर ‘नजरबंद’ किया गया था और परसों तक राज्य सरकार यह ‘झूठ’; बोलती रही थी कि वे कहीं भी आने जाने के लिए आजाद हैं। अब उन्हें अस्थाई जेल बना उसमें कैद कर लिया गया है।
पीएसए के तहत सरकार किसी को भी दो साल तक बिना सुनवाई के जेल में बंद रख सकती है।
पिछले 47 दिनों से राज्य सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल और अन्य बार-बार इसे सच साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि राज्य के हालात में बहुत सुधार हुआ है और सभी इलाकों से पाबंदियां हटा दी गई हैं। हालांकि उनके ‘नियर टू नारमेलसी’ वाले शब्द उनके दावों की सच्चाई जरूर बयां करते थे।
उनके द्वारा जब भी प्रेस वार्ता में ऐसे दावे किए जाते थे तो वे पत्रकारों के उन सवालों के जवाब नहीं देते थे जो उनसे दावों के प्रति किए जाते थे। ‘दरअसल वे जवाब देने के लिए बाध्य भी नहीं थे क्योंकि 47 दिनों से वे प्रेस कांफ्रेंस नहीं बल्कि ‘प्रेस ब्रीफिंग’ कर रहे थे जिसमें वे चाहे तो सवालों के जवाब को टाल सकते हैं,’ एक अधिकारी का कहना था।
कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल होने के दावे भी उस समय शक के घेरे में आते थे जब कश्मीर के लगभग हर भाग में दुकानें बंद नजर आतीं थीं और सड़कों से वाहन नदारद होते थे। ऐसे हालात के प्रति प्रवक्ता कहते थे कि यह आतंकियों का दवाब है और राज्य सरकर की ओर से सभी प्रतिबंध हटा दिए गए हैं।
हालांकि सच्चाई यह थी कि लोग खुद सिविल कर्फ्यू के साथ ही अवज्ञा आंदोलन को चला रहे थे जिसके तहत सुबह और शाम के वक्त ही कुछ घंटों के लिए दुकानें खोली जा रही हैं और उस समय दिखाई देने वाली भीड़ तथा वाहनों के रश को हालात सामान्य होने के तौर पर पेश किया जा रहा है।
सबसे हैरानगी की बात यह है कि कश्मीर में राजनीतिज्ञों को लगातार जेलों में ठूंसा जा रहा है। यह सिलसिला हालात सामान्य होने के दावों के बावजूद भी जारी है। कश्मीर में लगातार लगाए गए प्रतिबंधों के इतने दिनों के बाद अब डॉक्टर अब्दुल्ला को भी पीएसए लगा कर जेल में ठूंसने की ताजा घटना इसके प्रति संकेत जरूर देती थी कि फिलहाल भविष्य में कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां आरंभ नहीं हो पाएंगी और हालात फिलहाल बदतर ही बने रहेंगे।
वैसे राज्य प्रशासन के रवैये का एक नमूना यह भी था कि वह यही मापदंड जम्मू में भी अपनाए हुए थे जिसकी जनता ने हमेशा भारतीय सरकार के हर फैसले में उसका साथ दिया था। और बावजूद इस सच्चाई के प्रशासन भाजपा को छोड़ किसी अन्य राजनीतिक दल के नेता को भी जम्मू में भी प्रेस वार्ता करने की अनुमति नहीं दे रहा बल्कि अभी भी दर्जनों नेता जम्मू में भी अपने घरों में नजरबंद रखे गए हैं।
ऐसे में यह समझा जाना मुश्किल नहीं है कि जम्मू कश्मीर के हालात अभी भी उबाल पर हैं और लावा किसी भी समय फूट सकता है।