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एल्गार परिषद मामला: सुधा भारद्वाज की जमानत में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, खारिज की एनआईए की अपील

By विशाल कुमार | Updated: December 7, 2021 12:32 IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत इस आधार पर दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत उनकी हिरासत एक सत्र अदालत द्वारा बढ़ा दी गई थी जिसके पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं थी।

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ठळक मुद्देबॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज को 1 दिसंबर को डिफॉल्ट जमानत दी थी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।हाईकोर्ट ने आठ अन्य आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने एल्गार परिषद मामले में आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत मिलने को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत इस आधार पर दी थी कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत उनकी हिरासत एक सत्र अदालत द्वारा बढ़ा दी गई थी जिसके पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं थी।

हाईकोर्ट ने कहा था कि जब एनआईए अधिनियम, 2008 के तहत नामित एक विशेष अदालत पुणे में मौजूद थी, तब सत्र न्यायाधीश के पास निर्धारित 90 दिनों से अधिक हिरासत बढ़ाने का अधिकार नहीं था। 

उसने निर्देश दिया कि भारद्वाज को जमानत की शर्तों और उसकी रिहाई की तारीख तय करने के लिए 8 दिसंबर को विशेष एनआईए अदालत के समक्ष पेश किया जाए।

हालांकि, हाईकोर्ट ने वरवरा राव, सुधीर धावले, वर्नोन गोंजाल्विस, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और अरुण फरेरा द्वारा दायर डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए 16 कार्यकर्ताओं में भारद्वाज पहली ऐसी हैं जिन्हें डिफॉल्ट जमानत दी गई है।

कवि-कार्यकर्ता वरवरा राव फिलहाल मेडिकल जमानत पर बाहर हैं। फादर स्टेन स्वामी की इस साल 5 जुलाई को मेडिकल जमानत का इंतजार करते हुए एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एनआईए की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने मामले की सुनवाई कर रही अदालत और रिमांड बढ़ाने की अनुमति देने वाली अदालत आदि के बीच अंतर करने की कोशिश की, लेकिन पीठ उनकी बात पर सहमत नहीं हुई।

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