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या तो जमीनी खुफिया तंत्र नाकाम हुआ है या दुश्मन अधिक संगठित हो गया है: बुखारी ने नागरिकों की हत्याओं पर कहा

By भाषा | Updated: October 7, 2021 17:53 IST

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(सुमीर कौल)

श्रीनगर, सात अक्टूबर कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा असैन्य नागरिकों की हत्या के मामले बढ़ने के बीच जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने बृहस्पतिवार को कहा कि इस बारे में सोचना होगा कि क्या जमीनी और मानवीय खुफिया तंत्र विफल हो गया है या दुश्मन अधिक धारदार और संगठित हो गया है।

कारोबार से राजनीति में आये बुखारी केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किये जाने के बाद से यहां राजनीतिक गतिविधियां चला रहे हैं। उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा कि ‘‘जमीनी लोकतंत्र को बहाल करने में और अधिक देरी करने से केवल अशांति पैदा होगी जो हमें दिखनी शुरू हो गयी है’’।

जानेमाने केमिस्ट माखन लाल बिंदरू समेत तीन नागरिकों की मंगलवार को हत्या के बाद बुखारी का यह बयान आया है। ‘द रजिस्टेंस फ्रंट’ ने हमले की जिम्मेदारी ली है जिसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ का छाया संगठन माना जाता है।

बुखारी ने यहां ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरा सिर शर्म से झुक जाता है। मुझे नहीं पता कि बिंदरू के परिवार का सामना कैसे करुं। मैं नहीं जानता कि दुकानदार (वीरेंद्र पासवान) या बांदीपुरा में मारे गये शख्स के परिवार से कैसे नजरें मिलाऊं। यह बिल्कुल अमानवीय है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप मुझसे पूछते हैं तो हमें इस बारे में सोचना होगा: क्या हमारा जमीनी खुफिया तंत्र, मानवीय खुफिया तंत्र विफल हो गया या दुश्मन धारदार और हमसे अधिक संगठित हो गया है?’’

बुखारी का बयान ऐसे समय में आया है जब आतंकवादियों ने श्रीनगर में दो सरकारी स्कूल शिक्षकों को गोली मारकर उनकी जान ले ली। दोनों शिक्षकों की मौत के बाद पिछले पांच दिन में कश्मीर घाटी में मारे गये असैन्य नागरिकों की संख्या सात पहुंच गयी है। मारे गये चार लोग घाटी के अल्पसंख्यक समुदायों से थे।

जेकेएपी अध्यक्ष ने यह भी कहा कि समय आ गया है कि केंद्रशासित प्रदेश में जमीनी लोकतंत्र को बहाल करने के लिए राजनेता पहल करें।

उन्होंने कहा कि यह जम्मू कश्मीर में सभी के लिए दुख का समय है लेकिन इसके साथ हमें देखना होगा कि इस हालात से कैसे बाहर निकलें। ‘‘मुझे आम आदमी और प्रशासन के बीच संवादहीनता नजर आती है’’।

बुखारी ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमारी प्राथमिकता आम आदमी के साथ संवाद के माध्यम बहाल करने की होनी चाहिए। यह पुलिस या प्रशासन के जरिये हो सकता है। सभी को अपनी आंख और कान खुले रखने होंगे और आम आदमी की बात सुननी होगी।’’

मार्च 2020 में पार्टी की स्थापना के बाद से यहां हालात के आकलन के सवाल पर बुखारी ने कहा, ‘‘अगर आप मुझसे पूछते हैं कि मुझे कैसा लगता है तो केंद्र का शासन लागू हुए तीन साल हो गये। विकास के मामले में और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण तथा आम आदमी की बात सुने जाने के मामले में हमने जो सोचा था, उस लिहाज से कहूं तो मुझे दुख है कि इन सभी मानदंडों पर 1 से 10 तक के अंकों पर परिणाम 2 से ज्यादा नहीं है। इसलिए स्वाभाविक है कि हम अपनी अपेक्षा के हिसाब से संतुष्ट नहीं हैं।’’

हालांकि उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह हर चीज की समीक्षा करेंगे और ‘‘मुझे विश्वास है कि हम अंधेरी सुरंग के बाद रोशनी देखेंगे।’’

उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा अनुभवी राजनेता हैं और जम्मू कश्मीर के उत्थान के लिए अथक काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रशासन में कामकाज संभाल रहे लोग संभवत: जम्मू कश्मीर की जटिल स्थितियों से अवगत नहीं हैं।

बुखारी ने कहा, ‘‘अगर जम्मू कश्मीर की जगह देश का कोई और राज्य होता तो संभवत: उनका प्रशासनिक अनुभव जमीन पर चीजों को बदलने के लिए पर्याप्त होता। दुर्भाग्य से जम्मू कश्मीर की अपनी ऐतिहासिक, भौगोलिक और राजनीतिक पहचान है जिसे वे ही लोग बेहतर तरीके से समझ सकते हैं जिनमें यहां के लोगों के मनोविज्ञान को समझने की क्षमता हो।’’

उन्होंने कहा कि आगे आने वाला समय मुश्किल है लेकिन वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सलाह दे रहे हैं कि अधिक जिम्मेदारी लें और समुदायों, क्षेत्रों तथा यहां रहने वाले वर्गों के बीच कड़ी का काम करें।

बुखारी ने कहा, ‘‘हमारे अंदर के दुश्मन का पर्दाफाश करना होगा और उस पर लगाम कसनी होगी भले ही वह कोई भी हो।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो मेरे कार्यकर्ता घुटन महसूस कर रहे हैं, मेरे नेता घुटन महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें आजादी से आनेजाने की इजाजत नहीं है। लेकिन अगर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जनता के लिए काम नहीं करने दिया गया तो पूरा लोकतंत्र का दायरा मजाक नजर आएगा।’’

बुखारी ने कहा कि बिंदरू की हत्या कश्मीरी पंडितों को घर वापसी के लिए मनाने के प्रयासों के लिए झटका है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं खुद से यह गंभीर सवाल पूछता हूं कि मैं जगती (विस्थापन शिविर) में रहने वाले किसी कश्मीरी पंडित से श्रीनगर वापसी के लिए कैसे मना सकता हूं जब हम मिस्टर बिंदरू को नहीं बचा सके जिन्होंने श्रीनगर में रहने वाले हम सब लोगों से कहीं अधिक मानव सेवा की।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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