नयी दिल्ली, तीन जुलाई कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथिक दवाओं के इस्तेमाल के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर दर्ज अनेक प्राथमिकियों से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगाने की योगगुरू रामदेव की याचिका का विरोध करते हुए दिल्ली चिकित्सा संघ (डीएमए) ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर की है और कहा है कि रामदेव ने एलोपैथी का अपमान किया था और लोगों को टीकों तथा उपचार प्रोटोकॉल की अनदेखी करने के लिए उकसाया।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने 30 जून को रामदेव से कोविड के उपचार में एलोपैथिक दवाओं के उपयोग के खिलाफ कथित रूप से दिये गये उनके बयान का मूल रिकॉर्ड न्यायालय के समक्ष रखने को कहा था।
डीएमए में दिल्ली के 15,000 डॉक्टर सदस्य हैं। संगठन ने कहा कि रामदेव के पतंजलि समूह ने कोरोनिल किट बेचकर 1,000 करोड़ रुपये से अधिक कमाये, जिसे चिकित्सा नियामक इकाइयों ने मंजूरी नहीं दी थी।
डीएमए के अध्यक्ष जी एस ग्रेवाल के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया, ‘‘जब देश का पूरा चिकित्सा समुदाय एक होकर घातक महामारी से लड़ रहा था और हम लोगों को कोविड टीकों तथा सही उपचार को लेकर जागरुक करने का प्रयास कर रहे थे, तब रामदेव ने कोविड-19 रोधी टीकों और इसके उपचार प्रोटोकॉल के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया और इसके पीछे ‘कोरोनिल किट’ नामक उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देने की दुर्भावनापूर्ण मंशा थी।’’
वकील आशीष कोठारी के माध्यम से दाखिल याचिका में एक पक्ष के रूप में मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है। इसमें कहा गया है कि ‘कोरोनिल’ को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा मंजूरी मिलने और प्रमाणित किये जाने का झूठा दावा करके इसे बेचने का भ्रामक अभियान चलाया गया।
डीएमए ने रामदेव को ‘योगगुरू के लिबास में व्यापारी’ की संज्ञा देते हुए कहा कि उनके पास आयुर्वेद चिकित्सा करने या दवाएं देने की कोई डिग्री या लाइसेंस नहीं है।
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