स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन पर रोक, छात्रा ने कहा- ‘माहवारी वैश्विक महामारियों के लिए नहीं रुकती’

By भाषा | Published: April 23, 2020 09:31 PM2020-04-23T21:31:27+5:302020-04-23T21:31:27+5:30

कोरोना वायरस हुए लॉकडाउन के कारण स्कूलों को बंद कर करने और स्कूलों की ओर से सैनिटरी नैपकिन का वितरण रोके जाने या उसमें देरी होने के कारण इनकी कमी का सामना कर रही लड़कियों काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

Distribution of sanitary napkins in difficult Menstruation does not stop for global epidemics | स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन पर रोक, छात्रा ने कहा- ‘माहवारी वैश्विक महामारियों के लिए नहीं रुकती’

लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने से विभिन्न राज्यों में सैनिटरी पैड का वितरण बाधित हो गया है। (फोटो- सोशल मीडिया)

Highlightsदेश में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर रही छठी कक्षा से 12वीं कक्षा तक की कई छात्राओं ने ऐसी ही कहानियां सुनाई। केंद्र सरकार की ‘किशोरी शक्ति योजना’ के तहत हर महीने सैनिटरी नैपकिन दिए जाते हैं।

नई दिल्ली: कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन के कारण स्कूलों की ओर से सैनिटरी नैपकिन का वितरण रोके जाने या उसमें देरी होने के कारण इनकी कमी का सामना कर रही 12 वर्षीय श्वेता कुमारी का कहना है कि ‘‘माहवारी वैश्विक महामारियों के लिए नहीं रुकती है।’’ कुमारी अकेली नहीं है जिसकी ऐसी दिक्कतें हैं। देश में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर रही छठी कक्षा से 12वीं कक्षा तक की कई छात्राओं ने ऐसी ही कहानियां सुनाई।

इन्हें केंद्र सरकार की ‘किशोरी शक्ति योजना’ के तहत हर महीने सैनिटरी नैपकिन दिए जाते हैं। इन दिनों लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने से विभिन्न राज्यों में सैनिटरी पैड का वितरण बाधित हो गया है जिससे कम आय वर्ग वाले परिवारों से आने वाली ज्यादातर छात्राओं की परेशानियां बढ़ गई हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली कुमारी ने कहा, ‘‘पूरा ध्यान मास्क और सैनिटाइजर के वितरण पर है। कोई भी इन मूलभूत सुविधाओं के बारे में बात नहीं कर रहा है।

इस जानलेवा वायरस से अपने आप को बचाना महत्वपूर्ण है लेकिन माहवारी महामारियों के लिए नहीं रुकती।’’ राजस्थान के अलवर में सातवीं कक्षा की छात्रा गीता ने कहा, ‘‘अगर हमें इसे खरीदने के लिए पैसे भी मिल जाते हैं तो इस लॉकडाउन के दौरान सैनिटरी नैपकिन खरीदने के लिए महिलाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल है। मेरे इलाके में घर-घर जाकर मास्क बांटे जा रहे हैं लेकिन सैनिटरी नैपिकन का कुछ अता-पता नहीं है।’’ उत्तर प्रदेश के बरेली की घरेलू सहायिका रानी देवी ने अपनी बेटी के कारण दो साल पहले सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करना शुरू किया था और अब उसे भी ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ रहा है।

देवी ने कहा, ‘‘मैं दो साल पहले तक माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल ही करती थी। मेरी बेटी के स्कूल की एक शिक्षिका ने मुझे सैनिटरी नैपकिन की अहमियत के बारे में बताया। मेरी बेटी को यह स्कूल में मिल जाता और हम दोनों इसका इस्तेमाल करते। लेकिन अब लॉकडाउन के बाद चीजें बदल गई हैं।’’ दिल्ली के सरकारी स्कूलों में भी लड़कियों अपनी शिक्षिकाओं से फोन पर इसके बारे में पूछ रही हैं।

दिल्ली सरकार के एक स्कूल में पढ़ाने वाली एक शिक्षिका ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, ‘‘मुझे कुछ लड़कियों के साथ उनकी माताओं का भी फोन आया है लेकिन अभी नैपकिन पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। हमने इसके बारे में उच्च अधिकारियों को सूचित कर दिया है।’’ स्त्रीरोग विशेषज्ञ और दिल्ली सरकार के साथ उसके स्कूलों में माहवारी स्वास्थ्य पर काम करने वाली ‘सच्ची सहेली’ एनजीओ की संस्थापक सुरभि सिंह ने बताया कि उन्होंने इस मामले पर आप सरकार से बात की है।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 29 मार्च को ट्वीट किया था, ‘‘सैनिटरी नैपकिन की उपलब्धता के संबंध में बढ़ती चिंता पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार के गृह सचिव ने सैनिटरी पैड्स के आवश्यक सामान होने के संबंध में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को स्पष्टीकरण जारी किया है।’’ 

Web Title: Distribution of sanitary napkins in difficult Menstruation does not stop for global epidemics

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