फिल्मों में गानों के इस्तेमाल को देखकर होती है निराशा : जावेद अख्तर

By भाषा | Updated: August 13, 2021 18:19 IST2021-08-13T18:19:38+5:302021-08-13T18:19:38+5:30

Disappointed to see the use of songs in films: Javed Akhtar | फिल्मों में गानों के इस्तेमाल को देखकर होती है निराशा : जावेद अख्तर

फिल्मों में गानों के इस्तेमाल को देखकर होती है निराशा : जावेद अख्तर

(जस्टिन राव)

मुंबई, 13 अगस्त दिग्गज गीतकार एवं पटकथा लेखक जावेद अख्तर का मानना है कि मौजूदा दौर के फिल्मकार अपनी फिल्मों में गानों का इस्तेमाल कहानी को बेहतर बनाने के लिए नहीं बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि उन पर फिल्म के गानों के जरिए अधिक कमाई करने की जिम्मेदारी होती है।

‘‘सिलसिला’’ (1981), ‘‘1942: ए लव स्टोरी’’, ‘‘दिल चाहता है’’, ’’कल हो ना हो’’ और ‘‘गली बॉय’’(2019) जैसी शानदार फिल्मों के गीत लिख चुके जावेद अख्तर का कहना है कि फिल्मकारों को गानों को फिल्म की पटकथा से जोड़ने में शर्म आती है इसलिए भी वे ऐसा करने से बचते हैं। मौजूदा दौर की फिल्मों में कहानी को तेजी से रूपहले पर्दे पर दिखाने का प्रचलन बढ़ा है, जिसका सीधा प्रभाव फिल्म के गीतों पर पड़ता है।

जावेद अख्तर ने पीटीआई-भाषा को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘ मौजूदा दौर में ज़िंदगी की रफ़्तार के साथ फिल्मों की रफ़्तार भी बढ़ी है जिसके परिणामस्वरूप संगीत की रफ़्तार में भी तेजी आई है। बहुत तेज संगीत में शब्दों को समझ पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। गानों के शब्दों को गहराई से तभी समझा जा सकता है, जब संगीत की गति मध्यम हो। मौजूदा दौर का संगीत गानों के बोल को अधिक महत्व नहीं देता।’’

76 वर्षीय लेखक का कहना है कि मौजूदा दौर की फिल्मों में पर्दे पर दिखने वाली नाटकीयता में कमी आई है, जोकि एक बड़ा बदलाव है। फिल्मकार पटकथा में भावुकता को अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं, इसलिए कलाकारों की भावनाओं को दर्शाने वाले गानों का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।

जावेद अख्तर ने कहा,‘‘ आज के दौर के निर्देशकों और लेखकों का दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। वे फिल्मों में भावुकता और भावनाओं को अधिक महत्व देने के पक्ष में नहीं हैं। इसलिए फिल्मों में भावुकता से जुड़े गानों की कमी देखी जा सकती है।’’

प्रख्यात गीतकार का मानना है कि मौजूदा दौर के फिल्मकार इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं कि फिल्मों के गानों को उसकी पटकथा से कैसे जोड़ा जाता है, क्योंकि वे हिंदी फिल्मों से नहीं बल्कि पश्चिमी सिनेमा जगत से अधिक प्रभावित हैं।

मशहूर गीतकार ने कहा कि जब कभी फिल्मों में पटकथा से जुड़े गीतों को शामिल किया जाता है तो उन्हें बैकग्राउंड में चलाया जाता है और उनका इस्तेमाल अधिक से अधिक धन राशि कमाने के लिए किया जाता है, क्योंकि फिल्म का संगीत बेचने से बहुत कमाई होती है। यह स्थिति बहुत ही दयनीय है।

वह कहते हैं कि आज के दौर में गुरु दत्त, राज कपूर, राज खोसला और विजय आनंद जैसे दिग्गजों द्वारा फिल्माए गीतों की अपेक्षा करना व्यर्थ है। गीतकार ने कहा कि ऐसा आवश्यक नहीं कि प्रत्येक फिल्म में गीत होने ही चाहिए, लेकिन हमारे देश में गीत-संगीत के जरिए कहानियों का वर्णन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसकी जड़े हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मौजूद हैं।

जावेद अख्तर ने कहा, ‘‘ यदि आप संस्कृत के नाटकों का उदाहरण लें, तो उनमें गीत हुआ करते हैं। राम लीला और कृष्ण लीला में भी गीत हैं। उर्दू और पारसी रंगमंच के नाटकों में भी गीतों को शामिल करने की परंपरा रही है।

जावेद अख्तर इस स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को जी5 पर प्रसारित होने वाले शो ‘‘इंडिया शायरी प्रोजेक्ट’’ में नजर आएंगे। इस शो में कौसर मुनीर, कुमार विश्वास और जाकिर खान जैसे शायर भी हिस्सा लेंगे। शायरी को लेकर जावेद अख्तर ने कहा, ‘‘ मैं शायरी को लेकर बहुत ही सकारात्मक हूं। आज की युवा पीढ़ी के शायरों ने एक नया रूपक, नयी शैली और नयी भाषा विकसित कर ली है, जोकि बहुत ही अच्छा संकेत है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Disappointed to see the use of songs in films: Javed Akhtar

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे