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दिनकर कुमार का ब्लॉगः कोयला खदान हादसे पर राजनीति दुखद

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 5, 2019 21:59 IST

मेघालय में कोयला खदान हादसों का सिलसिला वर्षो से चलता रहा है. रैट होल खनन की वजह से निदरेष मजदूर अक्सर जिंदा ही दफन होते रहे हैं और जब तक इस अमानवीय किस्म के कोयला खनन पर पूरी तरह रोक नहीं लग जाती, भविष्य में भी दफन होते रहेंगे.

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मेघालय की कोयला खदान में फंसे मजदूरों के बचाव अभियान को लेकर राजनीति जारी है जबकि बचाव के तमाम प्रयास के बावजूद उनके परिवार वाले अब उम्मीद खोते जा रहे हैं. एक पखवाड़े से अधिक का वक्त बीत चुका है जब पंद्रह मजदूर पूर्व जयंतिया हिल्स जिले के शान गांव के पास एक रैट होल खदान के अंदर कोयला निकालने के लिए गए थे. खदान के भीतर पानी भर जाने की वजह से खदान धंस गई और मजदूर अंदर ही फंस गए. 

मेघालय में कांग्रेस मांग कर रही है कि राज्य में रैट होल कोयला खनन को स्वीकृति मिलनी चाहिए और इसकी ठोस नीति बनाई जानी चाहिए. राज्य की सत्ताधारी एनपीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बचाव अभियान को लेकर संतोष व्यक्त कर रही है और इसके एक नेता ने बयान दिया है कि इसी तरह का एक हादसा 2012 में उस समय हुआ था जब कांग्रेस सत्ता में थी. उस समय दक्षिण गारो हिल्स जिले में खदान के अंदर फंसे 14 बाल मजदूरों की लाशों को कभी निकाला नहीं जा सका था.

मेघालय में कोयला खदान हादसों का सिलसिला वर्षो से चलता रहा है. रैट होल खनन की वजह से निदरेष मजदूर अक्सर जिंदा ही दफन होते रहे हैं और जब तक इस अमानवीय किस्म के कोयला खनन पर पूरी तरह रोक नहीं लग जाती, भविष्य में भी दफन होते रहेंगे. 1992 में दक्षिण गारो हिल्स जिले में इसी तरह 30 मजदूर खदान के अंदर फंस गए थे और उनमें से आधे मारे गए थे.

2012 में गारो हिल्स में 15 मजदूर खदान हादसे में मारे गए. ज्यादातर मजदूर नेपाल और बांग्लादेश के नागरिक हैं जो गरीबी की वजह से जान जोखिम में डालकर कोयला खनन करते हैं.

जमीनी सच्चाई यही है कि मेघालय की सभी राजनीतिक पार्टियां स्थानीय लोगों की जीविका के साधन के हक में रैट होल कोयला खनन का समर्थन करती रही हैं. 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने रैट होल खनन को गैरकानूनी बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था और तर्क दिया था कि यह विज्ञान सम्मत नहीं है तथा पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है. हाल ही में मेघालय के कुछ नागरिक संगठनों ने जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश की है उससे एक अलग ही तस्वीर उभर कर सामने आई है. इस रिपोर्ट में बताया गया कि भले ही कोयला खनन पर राज्य में एनजीटी की तरफ से रोक लगाई गई है लेकिन मेघालय में कई राजनेताओं के संरक्षण में धड़ल्ले से कोयला खनन किया जाता रहा है. इस बार जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें 30 प्रतिशत  से अधिक उम्मीदवार ऐसे थे जो या तो कोयला खदानों के मालिक थे या कोयला खनन एवं परिवहन के साथ जुड़े हुए थे. इनमें से अब कई मंत्नी भी बनाए जा चुके हैं. 

मेघालय में कोयला खनन आज भी बेतरतीब और आदिम काल से प्रचलित तरीके से किया जा रहा है. कोई स्पष्ट नीति न होने की वजह से कई कोयला माफिया अपना वर्चस्व कायम कर चुके हैं. इसी तरह का भ्रष्टाचार पड़ोसी राज्य असम में भी है. यह अवैध कोयला खनन इसीलिए जारी रहा चूंकि एनजीटी ने रैट होल खनन पर रोक तो लगा दी लेकिन उसने अप्रैल 2014 से पहले निकाले गए कोयले के सीमित परिवहन की अनुमति दे दी. यही वजह है कि कोयला खनन जारी रहा और उनका परिवहन यह बता कर किया जाता रहा कि अप्रैल 2014 से पहले ही खनन किया गया था. यह पता लगाना लगभग नामुमकिन है कि जिस कोयले का परिवहन किया जा रहा है वह अप्रैल 2014 से पहले निकाला गया था या उसके बाद. 

मेघालय से असम के कछार और करीमगंज जिले तक और फिर त्रिपुरा और बांग्लादेश तक, इसी तरह मेघालय से कार्बी आंगलोंग, धरमतुल, जागीरोड, जोराबाट और अन्य स्थानों तक कोयले से लदे ट्रकों को नकली चालान के जरिए भेजा जाता रहा है और भारी पैमाने पर राजस्व को नुकसान भी पहुंचाया जाता रहा है. संगठित कोयला तस्कर पुलिस वालों, आयकर अधिकारियों और परिवहन अधिकारियों को निगरानी चौकियों पर रिश्वत देते हैं.

वे सीसीटीवी कैमरा रहते हुए भी अपनी मनमानी करते हैं और कोयले को भंडारों में छुपा कर रखते हैं, फिर दूसरे राज्यों को भेजते हैं. इस वर्ष असम में दो कोयला माफिया को गिरफ्तार किया गया. एक बराक घाटी से कोयला तस्करी संचालित कर रहा था तो दूसरा मेघालय के बर्नीहाट से गुवाहाटी के खानापाड़ा के बीच गतिविधियां चला रहा था.  बराक घाटी से पकड़े गए कोयला माफिया की डायरी से कई नेताओं, विधायकों, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के नामों का पता चला है जिन्हें नियमित रूप से रिश्वत दी जाती रही थी.

अभी तक किसी के खिलाफ सीआईडी और सीबीआई की जांच शुरू नहीं की गई है. 10 शीर्ष कोयला उत्पादक राज्यों में शामिल मेघालय और असम में कोयला खनन को गैरकानूनी तरीके से किए जाने की अनुमति राज्य सरकारों की तरफ से मिलती रही है और हमेशा इसका नतीजा गरीब श्रमिकों को भुगतना पड़ता है.

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