RSS ने भाजपा से बनाई दूरी? दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा विधानसभा चुनावों के परिणाम देते हैं संकेत!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 16, 2020 08:06 AM2020-02-16T08:06:57+5:302020-02-16T11:03:29+5:30
2002 में मोदी गुजरात में अपने प्रयोग में सफल रहे थे जहां विश्व हिंदू परिषद, भारतीय किसान संघ को अपना आकार छोटा करने के लिए कहा गया था. वास्तव में आरएसएस महासचिव सुरेश भैयाजी की ओर से हाल में की गई टिप्पणी ने भाजपा और हिंदुओं के बीच स्पष्ट अंतर पैदा कर दिया.
वेंकटेश केसरी
भाजपा का चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अत्यधिक निर्भरता से आरएसएस का उससे दूरी बनती दिख रही है. दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र और यहां तक कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम इसके संकेत दे रहे हैं.
हालांकि, मोदी और शाह ने 2014 जबसे संगठन को नियंत्रित करना शुरू किया है, तब से भाजपा को मजबूत, आक्रामक और अच्छी तरह से चुनाव लड़ने वाला बनाया. आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों ने या तो अहंकार बंद कर दिया या दूसरी भूमिका निभाने का फैसला किया.
2002 में मोदी गुजरात में अपने प्रयोग में सफल रहे थे, जहां विश्व हिंदू परिषद, भारतीय किसान संघ को अपना आकार छोटा करने के लिए कहा गया था. वास्तव में आरएसएस के सर कार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी की ओर से हाल में की गई टिप्पणी ने भाजपा और हिंदुओं के बीच स्पष्ट अंतर पैदा कर दिया.
मीडिया के एक वर्ग ने उनको उद्धृत करते हुए कहा था कि भाजपा के विरोध का अर्थ हिंदुओं का विरोध करना नहीं है. उन्होंने कहा था कि हिंदू समुदाय का मतलब भाजपा नहीं है और भाजपा का विरोध करना हिंदुओं का विरोध नहीं है. यह मोदी और शाह की अगुवाई वाली भाजपा को यह संदेश था कि यह पार्टी हिंदुओं का इकलौता 'ठेकेदार' नहीं है.
आप के अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस पर अमल किया. उन्होंने भाजपा की आलोचना की, लेकिन वह उसके जाल में नहीं फंसे और हनुमान भक्त बनकर उभरे. जहां तक आसन्न बिहार विधानसभा चुनाव का संबंध है, भाजपा आलाकमान अपने सहयोगी दलों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जदयू और लोजपा संस्थापक संस्थापक विलास पासवान के हाथों में विभाजित जनता, वामदलों और कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई की कमान पूरी तरह सौंपना चाहते हैं.
नीतीश और पासवान धर्मनिरपेक्ष मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर चुनाव अभियान चला सकते हैं जबकि भाजपा अपने मूल मतदाताओं का ध्रुवीकरण करेगी. असल मुद्दा यह है कि इस लड़ाई में संघ परिवार की क्या भूमिका होगी.
आरएसएस राजनीतिक और चुनावी मदद करता रहा है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह अपनी वैचारिक पहचान में कमजोर न पड़ जाए, इसके लिए प्रचारक को भेजता रहा है. वहीं, यह तब चुप रहा जब कट्टर हिंदुवादी मानी जाने वाली इकलौती क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना ने राजग को छोड़कर कुछ महीने पहले महाराष्ट्र में राकांपा-कांग्रेस के साथ गठबंधन किया.