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दिल्ली चुनाव: क्या है मुस्लिम मतदाताओं के मन की बात?

By भाषा | Updated: February 8, 2020 04:08 IST

दिल्ली में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जिनकी बल्लीमारान, मटिया महल, मुस्तफाबाद, ओखला, बाबरपुर, सीलमपुर समेत कई अन्य इलाकों में अच्छी खासी आबादी है। इस चुनाव में मुसलमानों के सामने जहां सीएए और एनआरसी बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, वहीं रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दे भी उन्हें प्रभावित कर रहे हैं।

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ठळक मुद्दे68 वर्षीय हुसैन कहते हैं, ''पाकिस्तान, हिंदू-मुस्लिम विभाजन इस चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया है। मैंने इससे पहले कभी इतना ध्रुवीकरण वाला चुनाव नहीं देखा।''पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान में प्रिंटिंग प्रेस के मालिक मोहम्मद जावेद (50) के अनुसार ध्रुवीकरण से कुछ चुनावी फायदा तो हो सकता है, लेकिन बाद में यह सब खत्म हो जाएगा।

इम्तियाज हुसैन दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के बटला हाउस में अपने दफ्तर में बैठे हुए फिल्म 'कर्मा' के मशहूर गीत ‘‘दिल दिया है, जां भी देंगे'' सुनकर भावुक हो जाते हैं। इस देश से प्रेम है उन्हें और वह अपनी भारतीयता बरकरार रखना चाहते हैं। पुरानी दिल्ली में पैदा हुए और पिछले 15 साल से ओखला इलाके में रह रहे 68 वर्षीय हुसैन कहते हैं, ''पाकिस्तान, हिंदू-मुस्लिम विभाजन इस चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया है। मैंने इससे पहले कभी इतना ध्रुवीकरण वाला चुनाव नहीं देखा।''

''नो-सीएए, नो-एनआरसी'' लिखे एक पोस्टर की ओर इशारा करते हुए हुसैन ने कहा, ''जो मुद्दे ही नहीं है उन्हें मुद्दा बनाया गया।'' उनकी नजर में यह चुनावी मुद्दे नहीं होने चाहिये।

सीएए विरोधी प्रदर्शनों के केन्द्र शाहीन बाग से केवल दो किलोमीटर दूर इस इलाके की तंग गलियों में ऐसे ही कई पोस्टर देखे जा सकते हैं। भाजपा शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शन को सामने रखकर चुनाव प्रचार कर रही है।

हुसैन इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं कि शनिवार को जब वह मतदान करने जाएंगे तो संशोधित नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिकता पंजी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के साथ-साथ बिजली, पानी और साफ-सफाई जैसे मुद्दों को भी ध्यान में रखेंगे।

रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों और सीएए-एनआरसी-एनपीआर के बीच उलझे हुए हुसैन को लगता है कि उनकी भारतीयता की पहचान खतरे में है। शहर के अन्य इलाकों में रह रहे कई मुसलमान भी हुसैन की इस बात से सहमत दिखाई देते हैं।

दिल्ली में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जिनकी बल्लीमारान, मटिया महल, मुस्तफाबाद, ओखला, बाबरपुर, सीलमपुर समेत कई अन्य इलाकों में अच्छी खासी आबादी है। इस चुनाव में मुसलमानों के सामने जहां सीएए और एनआरसी बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, वहीं रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दे भी उन्हें प्रभावित कर रहे हैं।

दूसरी बार सत्ता में आने की कोशिश में जुटी आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की कई योजनाएं शुरू की हैं और सत्ता में लौटने पर इन्हें बरकरार रखने का भी वादा किया है। लेकिन उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले कारोबारी अबरार अहमद (32) को यकीन नहीं है कि इससे उनके समुदाय को कोई बड़ा फायदा होगा।

अहमद कहते हैं, ''अगर हम इस देश के नागरिक ही नहीं हैं तो मुफ्त बिजली, पानी और वाई-फाई का क्या फायदा? हम चाहते हैं कि इस कानून को वापस लिया जाए।''

हालांकि उन्होंने कहा कि उनके इलाके में पेयजल की बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा, ''मैं कैंसर पीड़ित हूं और तीन महीने पहले मेरी कीमोथैरेपी पूरी हुई है। डॉक्टरों ने मुझे कम से कम तीन महीने तक पैकिंग वाला पानी पीने के लिये कहा है।''

वह इस बात को लेकर भी नाखुश हैं कि आम आदमी पार्टी ने सीएए-एनआरसी, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक के मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं किया।

उन्होंने कहा, ''महिलाएं शाहीन बाग में धरने पर बैठी हैं और मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर एक भी शब्द नहीं बोला।''

पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान में प्रिंटिंग प्रेस के मालिक मोहम्मद जावेद (50) के अनुसार ध्रुवीकरण से कुछ चुनावी फायदा तो हो सकता है, लेकिन बाद में यह सब खत्म हो जाएगा।

जावेद कहते हैं, ''आम आदमी अच्छी जिंदगी चाहता है और बिना किसी को तकलीफ दिये अपना जीवन जीता है। वे कभी भी हिंदू-मुस्लिम झगड़े नहीं चाहते।''

उन्होंने कहा, ''उनकी मांगें बहुत आसान हैं: बेहतर सरकारी स्कूल, सस्ती बिजली, साफ पानी और किफायदी स्वास्थ्य सुविधाएं। जो भी पार्टी उन्हें यह सब देगी उसे वोट मिलेंंगे। और मुझे लगता है कि आम आदमी पार्टी ने मुद्दों पर अच्छा काम किया है, लिहाजा वह चुनाव जीतेगी।''

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