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शीला दीक्षित को किनारे लगाने के लिए विरोधियों ने मुहिम को दी हवा, दिल्ली चुनाव से पहले खेला जा सकता बड़ा गेम

By शीलेष शर्मा | Updated: July 18, 2019 19:16 IST

शीला दीक्षित को लोकसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी और उसी समय से शीला दीक्षित के खिलाफ प्रदेश के नेता सक्रिय थे. 

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ठळक मुद्देदिल्ली विधानसभा चुनाव के दिन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहे है राज्य की राजनीति भी गरमाने लगी है. शीला दीक्षित को लेकर पार्टी में पहला हंगामा उस समय हुआ जब लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी से चुनावी तालमेल की बात उठी. अब जब शीला दीक्षित खराब स्वास्थ्य के कारण पार्टी का कामकाज नहीं देख पा रही हैं तो उनको हटाने के लिए प्रदेश के कांग्रेसी नेता लामबंद हो गए हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के दिन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहे है राज्य की राजनीति भी गरमाने लगी है. कांग्रेस में इन चुनावों को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित को किनारे लगाने के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन, अरविंदर सिंह लवली और नसीब सिंह सक्रिय हो गये हैं. इन तीनों की कोशिश है कि शीला दीक्षित अपनी गैर मौजूदगी में यह जिम्मेदारी पार्टी के पूर्व सांसद और शीला के बेटे संदीप दीक्षित को ना सौंप दें. गौरतलब है कि शीला दीक्षित को लोकसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी और उसी समय से शीला दीक्षित के खिलाफ प्रदेश के नेता सक्रिय थे. 

शीला दीक्षित को लेकर पार्टी में पहला हंगामा उस समय हुआ जब लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी से चुनावी तालमेल की बात उठी. शीला के अड़ जाने पर राहुल के चाहते हुए भी यह गठबंधन नहीं हो सका. 

अब जब शीला दीक्षित खराब स्वास्थ्य के कारण पार्टी का कामकाज नहीं देख पा रही हैं तो उनको हटाने के लिए प्रदेश के कांग्रेसी नेता लामबंद हो गए हैं. अनेक नेताओं ने कांग्रेस के प्रभारी पी.सी. चाको को पत्र लिखकर शिकायत की कि यदि समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया तो विधानसभा चुनाव में पार्टी का वही हश्र होगा जो लोकसभा चुनाव में हुआ है. 

उच्च पदस्थ सूत्रो के अनुसार चाको ने इन तथ्यों को गंभीरता से  लेते हुए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्षों को पार्टी चलाने की जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय किया तथा शीला दीक्षित को पत्र भेज कर सूचित कर दिया कि चूंकि वे ना तो फोन पर संवाद कर रही हैं और ना ही पत्रों का उत्तर दे रही है अत: ऐसे हालात में पार्टी चलाने की जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्षों को सौंपी गयी है. उल्लेखनीय है कि शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाये जाने समय राहुल गांधी ने कार्यकारी अध्यक्षों को नियुक्ति की थी. 

उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली खबरों के अनुसार शीला दीक्षित अपने बेटे संदीप दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष पद सौंपे   जाने की जोड़-तोड़ में लगी है जो प्रदेश के नेताओं को मंजूर नहीं जिसके कारण पार्टी में आतंरिक खीचतान चरम पर पहुंच गयी है. इस बीच माकन, अरविंदर और नसीब की तिकड़ी ने प्रदेश नेताओं को विश्वास में लेने के लिए मुहिम शुरु कर दिया है और अब तक पार्टी के 29 वरिष्ठ नेताओं को विश्वास में ले चुके है. जिनमें पूर्व अध्यक्ष जे.पी. अग्रवाल भी शामिल है. 

इस मुहिम में तीनों कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोटिया, हारुन युसुफ और देवेंद्र यादव भी शामिल बताये जाते है और सबकी एक ही मांग है शीला को हटाकर तत्काल नये नेतृत्व को जिम्मेदारी सौंपी जाए ताकि संगठन चुनाव से पहले पूरी तरह खड़ा हो सके. 

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