दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप' को जहां उसकी 12 रणनीतिक सीटों ने राहत और बढ़त देकर संबल दिया तो वहीं भाजपा ने जिन 13 सीटों को रणनीतिक मानकर अपना ध्यान केंद्रित किया था वहां उसे निराशा हाथ लगी. दोनों दलों की ये रणनीतिक सीटें दिल्ली के अलग इलाकों में हैं.
'आप' की 12 रणनीतिक सीटें बवाना, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, करोलबाग, पटेल नगर, मादीपुर, देओली, आंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, कोंडली, सीमापुरी और गोकलपुर हैं. यह पर बड़ी संख्या में सफाई कर्मियों के घर भी हैं. ऐसे में झाडू चुनाव चिह्न से उनका सीधा जुड़ाव इस बार भी बरकरार दिखा. इन सीटों पर बवाना सीट को छोड़ किसी अन्य सीट पर कांटे का मुकाबला दिखाई नहीं दिया.
भाजपा ने मतगणना के दौरान शुरू से ही बवाना सीट पर बढ़त बनाई लेकिन अंत में इस सीट पर भी 'आप' ने जीत दर्ज कर ली. भाजपा और कांग्रेस नेताओं का मानना है कि चुनाव चिह्न झाडू होने के कारण दिल्ली की सुरक्षित सीटों पर भाजपा कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा है.
इन सीटों पर सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है. जिसने इन सीटों पर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल चौधरी प्रेम सिंह, कृष्णा तीरथ, राजकुमार चौहान, अमरीश सिंह गौतम, वीर सिंह धींगान और राजेश लिलोठिया को उभरने का मौका ही नहीं दिया. पिछले तीन विधानसभा चुनाव यानि 2013 से भाजपा और कांग्रेस दिल्ली की 12 सुरक्षित सीटों पर जीत के लिए तरस गई हैं. इस बार चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कार्यरत सफाई कर्मचारियों को स्थायी करने का वादा किया है. जिससे 12 सुरक्षित सीटों पर आम आदमी पार्टी की एक तरफा जीत हुई है.
भाजपा के खाते में आईं कम सीटें 2015 के विधानसभा चुनाव में नजफगढ़, कृष्णा नगर, शकूरबस्ती, लक्ष्मीनगर, रोहिणी, मुस्फाबाद, गांधीनगर, रोहताश नगर, घौंडा, राजौरी गार्डन, विश्वास नगर, शालीमार बाग और शाहदरा सीट में जीत हार का अंतर सबसे कम रहने के कारण भाजपा ने इन सीटों को जीतने के लिए विशेष रणनीति के तहत चुनाव लड़ा था. लेकिन भाजपा को 13 में से 6 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी है. इनमें लक्ष्मीनगर, रोहिणी, गांधीनगर, रोहताश नगर, घोंडा और विश्वास नगर सीट शामिल है. लेकिन भाजपा पिछली बार विधानसभा चुनाव में जीती मुस्फाबाद और उपचुनाव में जीती राजौरी गार्डन सीट को इस बार बचाने में कामयाब नहीं रही.