जमानत आदेश के संप्रेषण में देरी से स्वतंत्रता प्रभावित होती है: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

By भाषा | Updated: November 3, 2021 13:40 IST2021-11-03T13:40:58+5:302021-11-03T13:40:58+5:30

Delay in communication of bail order affects liberty: Justice Chandrachud | जमानत आदेश के संप्रेषण में देरी से स्वतंत्रता प्रभावित होती है: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

जमानत आदेश के संप्रेषण में देरी से स्वतंत्रता प्रभावित होती है: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

नयी दिल्ली, तीन नवंबर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने जेल प्राधिकारियों तक जमानत के आदेश के संप्रेषण में देरी को ‘‘बहुत गंभीर खामी’’ बताया है और ‘‘युद्ध स्तर पर’’ इसका समाधान किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि यह समस्या हर विचाराधीन कैदी की ‘‘स्वतंत्रता’’ को प्रभावित करती है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने वादियों को ऑनलाइन कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए ‘ई-सेवा केंद्रों’ और डिजिटल अदालतों के उद्घाटन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन समारोह में कहा, ‘‘आपराधिक न्याय प्रणाली में सबसे गंभीर खामी जमानत आदेश के संप्रेषण में देरी है और इस समस्या से युद्ध स्तर पर निपटे जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह हर विचाराधीन कैदी या उस कैदी की भी आजादी को भी प्रभावित करती है, जिसकी सजा निलंबित की गई है...।’’

बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को एक क्रूज पोत से मादक पदार्थ मिलने के मामले में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा जमानत मंजूर किए जाने के बावजूद मुंबई स्थित आर्थर रोड जेल में एक अतिरिक्त दिन बिताना पड़ा था।

इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने न्यायालय के आदेशों के क्रियान्वयन में विलंब की बढ़ती खबरों पर नाराजगी जताई थी। उसने कहा था कि जमानत के आदेशों के संप्रेषण के लिए एक ‘‘सुरक्षित एवं विश्वसनीय’’ माध्यम की स्थापना की जायेगी। पीठ ने कहा था, ‘‘हम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के युग में हैं लेकिन हम अब भी आदेश पहुंचाने के लिए आसमान में कबूतर उड़ाना चाहते हैं।’’

इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने देश भर में उसके आदेशों को तेजी से प्रेषित करने और उनके अनुपालन के लिए ‘फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस’ (फास्टर) परियोजना को लागू करने का आदेश दिया। उसने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से हर जेल में इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित करने को कहा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ओडिशा उच्च न्यायालय की एक पहल का जिक्र किया, जिसमें प्रत्येक विचाराधीन कैदी और कारावास की सजा भुगत रहे हर दोषी को "ई-हिरासत प्रमाण पत्र" प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

उन्होंने कहा, “यह प्रमाण पत्र हमें उस विशेष विचाराधीन कैदी या दोषी के मामले में प्रारंभिक हिरासत से लेकर बाद की प्रगति तक सभी आवश्यक डेटा मुहैया कराएगा। इससे हमें यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी कि जमानत के आदेश जारी होते ही उन्हें तत्काल संप्रेषित किया जा सके।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने डिजिटल अदालतों के महत्व का भी उल्लेख किया और कहा कि यातायात संबंधी चालानों के निर्णय के लिए इन अदालतों को 12 राज्यों में स्थापित किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘देश भर में 99.43 लाख मामलों का निपटारा हो चुका है। कुल 18.35 लाख मामलों में जुर्माना वसूला गया है। एकत्र किया गया कुल जुर्माना 119 करोड़ रुपये से अधिक है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने के लगभग 98,000 आरोपियों ने मुकदमा लड़ने का फैसला किया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आप अब स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि जिस आम नागरिक का यातायात का चालान कटा हो, उसके लिए अपने काम से छुट्टी लेकर यातायात का चालान भरने के लिए अदालत जाना उपयोगी नहीं है।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बताया कि देश में जिला अदालतों में 2.95 करोड़ आपराधिक मामले लंबित हैं और 77 फीसदी से ज्यादा मामले एक साल से ज्यादा पुराने हैं।

उन्होंने कहा, “कई आपराधिक मामले लंबित हैं क्योंकि आरोपी वर्षों से फरार हैं।’’

उन्होंने कहा कि आपराधिक मामलों के निपटारे में देरी का प्रमुख कारण खासकर जमानत मिलने के बाद आरोपी का फरार रहना है और दूसरा कारण, आपराधिक मुकदमे की सुनवाई के दौरान साक्ष्य दर्ज करने के लिए आधिकारिक गवाहों का पेश नहीं होना है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हम यहां भी सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय की ई-समिति में हम इस समय इसी पर काम कर रहे हैं।

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