मृत्युदंड कोई समाधान नहीं : दुष्कर्म रोकने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों की राय

By भाषा | Updated: December 3, 2019 05:53 IST2019-12-03T05:53:02+5:302019-12-03T05:53:02+5:30

ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमन असोसिएशन (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव कविता कृष्णन ने ट्विटर पर कहा कि समाधान मृत्यु दंड में नहीं बल्कि “सहमति के सम्मान” में निहित है

Death penalty is not a solution: the opinion of social workers, lawyers on preventing rape | मृत्युदंड कोई समाधान नहीं : दुष्कर्म रोकने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों की राय

मृत्युदंड कोई समाधान नहीं : दुष्कर्म रोकने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों की राय

Highlights संसद सदस्य जहां दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड, भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या, बंध्याकरण जैसी सख्त सजा की मांग कर रहे हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता और वकीलों ने सोमवार को दलील दी कि यह “निश्चित रूप से समाधान नहीं” है।

 संसद सदस्य जहां दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड, भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या, बंध्याकरण जैसी सख्त सजा की मांग कर रहे हैं वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ता और वकीलों ने सोमवार को दलील दी कि यह “निश्चित रूप से समाधान नहीं” है। दिल्ली स्थित सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि मृत्युदंड से महिलाओं के लिये उठाई जाने वाली आवाज पर “विपरीत असर” पड़ेगा।

उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, “मृत्युदंड निश्चित रूप से समाधान नहीं है। वास्तव में इससे महिलाओं के लिए उठाई जाने वाली आवाज पर विपरीत असर पड़ेगा। इससे अक्सर यह होगा कि आरोपी हर तरह के साक्ष्य को खत्म करने की कोशिश करेगा ।” उन्होंने कहा कि परिवार के अंदर होने वाले दुष्कर्म के मामलों में मृत्युदंड के प्रावधान से “महिलाओं पर यह दबाव रहेगा कि वे इसकी रिपोर्ट न करें।”

हैदराबाद में पिछले हफ्ते पशु चिकित्सक की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या की वजह से दुष्कर्मियों को सजा का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। हाल में देश के कई दूसरे इलाकों से भी ऐसे ही मामले सामने आए हैं। पार्टी लाइन से अलग हटकर सभी दलों के नेताओं ने हाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोतरी की निंदा की और एक तय समय-सीमा में दोषियों को दंडित किये जाने के लिये सख्त कानून की मांग की। राज्यसभा में सोमवार को की गई मांगों में दुषकर्मियों के लिये मृत्युदंड, दोषियों की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या किये जाने और उनका बंध्याकरण किये जाने जैसी मांग उठी। ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमन असोसिएशन (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव कविता कृष्णन ने ट्विटर पर कहा कि समाधान मृत्यु दंड में नहीं बल्कि “सहमति के सम्मान” में निहित है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, “नारीवादी कोमल हृदय होने की वजह से मृत्युदंड का विरोध नहीं करते बल्कि इसलिये करते हैं क्योंकि यह महिलाओं के हितों के खिलाफ है और पितृसत्ता का कार्य करता है।” सरकार ने 2013 में घोषणा की थी कि दुष्कर्म की वजह से होने वाली मृत्यु के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान लागू होगा। उच्चतम न्यायालय की वकील करुणा नंदी ने कहा कि मृत्युदंड की मांग “उन लोगों की परिचायक है जो हताश हैं” और यह नहीं जानते की महिलाओं की स्वतंत्रता की रक्षा कैसे हो। उन्होंने कहा कि सजा आपराधिक मामले के आखिरी चरण में आती है और “सच्चा न्याय” होगा “महिला से बलात्कार होने से पहले।”

उच्चतम न्यायालय की एक और वकील शिल्पी जैन ने कहा कि मृत्युदंड से बड़ा इनकार है खास तौर पर भारत जैसे देश में जहां कानून को लागू करने की स्थिति बेहद खराब है। उन्होंने कहा कि अपराध की जांच जमीनी स्तर पर सबसे निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा की जाती है जो अक्सर महज स्कूल से पासआउट होते हैं और इसलिये “अकादमिक रूप से कानून से निपटने के लिये सुसज्जित नहीं होते।” उन्होंने कहा कि वे “काम के बोझ से दबे होते हैं और कम पैसे पाते हैं” जिसकी वजह से भ्रष्टाचार का रास्ता खुलता है। जैन ने कहा,“यही वजह है कि कई जांच में आरोपी बरी हो जाते हैं। हम फॉरेंसिक साक्ष्यों पर भरोसा नहीं करते।” 

Web Title: Death penalty is not a solution: the opinion of social workers, lawyers on preventing rape

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