न्यायालय ने 1988 में नशे में झगड़े पर बैंक कर्मी की सेवा से बर्खास्तगी को बरकरार रखा

By भाषा | Updated: September 29, 2021 21:34 IST2021-09-29T21:34:54+5:302021-09-29T21:34:54+5:30

Court upheld the dismissal of a bank employee from the service of a drunken brawl in 1988 | न्यायालय ने 1988 में नशे में झगड़े पर बैंक कर्मी की सेवा से बर्खास्तगी को बरकरार रखा

न्यायालय ने 1988 में नशे में झगड़े पर बैंक कर्मी की सेवा से बर्खास्तगी को बरकरार रखा

नयी दिल्ली, 29 सितंबर बैंक परिसर के अंदर नशे में बैंक कर्मचारी द्वारा अधिकारियों से मारपीट करने और प्रबंधन को अपशब्द कहने की घटना के 33 साल बाद उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को आरोपी को सुनाई गई सेवा से बर्खास्तगी की सजा को बरकरार रखा।

उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक बहुराष्ट्रीय बैंक की याचिका 2015 में दायर होने के बाद छह साल तक शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित रही।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय और श्रम अदालत के आदेश को दरकिनार कर दिया और 12 जनवरी 1988 को हुई घटना के बाद आर सी श्रीवास्तव के खिलाफ आंतरिक विवाद जांच के बाद सुनाए गए सेवा से बर्खास्तगी के फैसले को बरकरार रखा।

शीर्ष अदालत ने कहा, “श्रम अदालत का फैसला महज परिकल्पना पर आधारित नहीं होना चाहिए। वह मताग्रही व अप्रमाणित बयान के आधार पर प्रबंधन के फैसले को नहीं पलट सकता। अधिनियम 1947 की धारा 11-A के तहत इसका अधिकार क्षेत्र हालांकि व्यापक है लेकिन इसका विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग किया जाना चाहिए। न्यायिक विवेकाधिकार सनकी या मनमौजी ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह सबूतों की जांच या विश्लेषण कर सकता है लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि वह इसे करता कैसे है।”

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में, इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों को देखते हुए, जहां कामगार (श्रीवास्तव) को 57 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया गया था और 31 जनवरी, 2012 को उसने सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर ली थी, न्यायालय यह कहना उचित समझता है कि उस भुगतान के संदर्भ में कोई वसूली नहीं की जाएगी जो कामगार को अंतराल अवधि में की गयी है।

पीठ ने कहा, “अपील सफल होती है और तदनुसार स्वीकार की जाती है तथा न्यायाधिकरण (श्रम अदालत) द्वारा पारित 14 सितंबर, 2006 के फैसले की पुष्टि करते हुए 21 नवंबर, 2014 के उच्च न्यायालय के फैसले को इस स्पष्टीकरण के साथ अलग रखा जाता है कि भुगतान के संदर्भ में कोई वसूली नहीं होगी जो प्रतिवादी-कार्यकर्ता को अंतराल अवधि में की गयी है।”

पीठ ने कहा कि यह सुविचारित विचार है कि न्यायाधिकरण द्वारा पारित और उच्च न्यायालय द्वारा आक्षेपित निर्णय के तहत पुष्टि किया गया फैसला कानून की नजरों में टिकने योग्य नहीं है।

यह घटना 12 जनवरी 1988 को हुई और जांच अधिकारी ने श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप साबित होने के बाद 22 अगस्त 1991 के एक आदेश द्वारा सेवा से बर्खास्त करने की सजा का आदेश दिया।

श्रीवास्तव ने तब श्रम न्यायालय या औद्योगिक विवाद न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया, जिसने 14 सितंबर 2006 के अपने आदेश के तहत सेवा से बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया और बैंक को निर्देश दिया कि वह कर्मचारी को पूर्ण वेतन, वरिष्ठता और पद से जुड़े सभी परिणामी लाभों के साथ सेवा में बहाल करे।

न्यायाधिकरण के फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, जिसने 21 नवंबर 2014 को बैंक की याचिका खारिज कर दी।

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Web Title: Court upheld the dismissal of a bank employee from the service of a drunken brawl in 1988

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