न्यायालय ने ट्वीट पर राजदीप के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना मुकदमा दर्ज किया
By भाषा | Updated: February 16, 2021 22:24 IST2021-02-16T22:24:20+5:302021-02-16T22:24:20+5:30

न्यायालय ने ट्वीट पर राजदीप के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना मुकदमा दर्ज किया
नयी दिल्ली, 16 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका के संबंध में कथित आपत्तिजनक ट्वीट को लेकर पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना का मामला दर्ज किया है।
यह मामला आस्था खुराना द्वारा अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार के जरिए एक याचिका दायर किए जाने के बाद दर्ज किया गया है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत सरदेसाई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए देश के प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध किया गया है।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 17 सितंबर 2020 को सरदेसाई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया था।
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा अवमानना याचिका देश के संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी के खिलाफ दायर की जा रही है। यह याचिका इस न्यायालय द्वारा पारित प्रत्येक आदेश पर टिप्पणियों को लेकर है जिससे देश के नागरिकों के मन में उच्चतम न्यायालय की छवि खराब होती है।
यह याचिका पिछले साल 21 सितंबर को दायर की गई थी और 13 फरवरी को स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे मामले के रूप में दर्ज किया गया।
संविधान के अनुच्छेद 129 के अनुसार उच्चतम न्यायालय रिकार्ड न्यायालय होगा और उसको अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी।
याचिका में कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत ने अतीत में विभिन्न ऐतिहासिक फैसले पारित किए हैं और कथित प्रतिवादी ने प्रत्येक फैसले पर विभिन्न अपमानजनक टिप्पणियां की हैं और अदालत की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
याचिका में अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना के लिए एक रुपये का जुर्माना लगाने के न्यायालय के फैसले के संबंध में सरदेसाई द्वारा 31 अगस्त, 2020 को किए गए ट्वीट का हवाला दिया गया है।
उच्चतम न्यायपालिका की आपराधिक अवमानना दंडनीय है और इस पर 2,000 रुपये तक का जुर्माना और छह महीने तक की कैद की सजा का प्रावधान है।
खुराना ने अपनी याचिका में कहा कि प्रतिवादी ने न केवल इस अदालत के फैसलों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उन्होंने अतीत में पूर्व न्यायाधीशों और पूर्व प्रधान न्यायाधीशों के खिलाफ टिप्पणियां भी की हैं और न्यायाधीशों को उनके कर्तव्य और जिम्मेदारियां बताने का प्रयास किया है।
अटॉर्नी जनरल ने पिछले साल 17 सितंबर को अवमानना कार्रवाई शुरू करने के लिए सहमति देने से इनकार करते हुए कहा था, ‘‘“मैंने ट्वीट पर गौर किया है। मुझे लगता है कि श्री सरदेसाई द्वारा दिए गए बयान इतने गंभीर नहीं हैं कि उनसे उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा कम हो या लोगों के मन में न्यायालय का कद छोटा हो जाए।’’
किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए, अदालत की अवमानना कानून, 1971 की धारा 15 के तहत अटार्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति आवश्यक है।
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