कोरोना वायरसः मध्यमवर्ग के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा बचाना मुश्किल हुआ?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 10, 2020 06:48 PM2020-04-10T18:48:13+5:302020-04-10T18:48:13+5:30
पहले पन्द्रह प्रतिशत राशि ही जरूरतमंद लोगों तक पहुंचती थी, अब केवल पन्द्रह प्रतिशत लोगों तक ही सहायता पहुंच रही है!
कोरोना वायरस अटैक के बाद लागू लॉकडाउन के कारण सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं. अब तक का समय तो लोगों ने जैसे तैसे काटा है, लेकिन लॉकडाउन आगे बढ़ने की खबरों ने लोगों को बेचैन कर दिया है, खासकर मध्यमवर्ग के सामने सामाजिक प्रतिष्ठा बचाने का सवाल गहराता जा रहा है. यही नहीं, उन गरीबों, बुजुर्गों आदि के सामने भी सवालिया निशान है, जिनके नाम, सहायता की पात्रता के लिए, किसी भी सरकारी कागज में दर्ज नहीं हैं.
मध्यमवर्ग के पास अपना घर है, गाड़ी है, लेकिन खानेपीने का सामान कम होता जा रहा है और अब आगे खरीदने के लिए पैसे भी नहीं हैं. जो मध्यमवर्ग के लोग किराए के मकानों में रहते हैं, जिनके पास किराए की दुकानें हैं, वे इस बात को लेकर परेशान हैं कि वे आने वाले समय में अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा कैसे बचाएंगे?
बड़ी परेशानी यह भी है कि यदि घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो उसकी जांच और दवाओं की खरीददारी कहां से होगी? पहले पन्द्रह प्रतिशत राशि ही जरूरतमंद लोगों तक पहुंचती थी, अब केवल पन्द्रह प्रतिशत लोगों तक ही सहायता पहुंच रही है!