Coronavirus: लॉकडाउन में सरकार की सराहनीय पहल, एम्स सहित देश के अस्पतालों में वाट्सऐप और वीडियोकॉल के जरिये होगा उपचार
By एसके गुप्ता | Published: March 30, 2020 07:52 AM2020-03-30T07:52:20+5:302020-03-30T07:52:20+5:30
एम्स सहित अन्य अस्पतालों में व्हाट्सएप्प, वीडियो कॉलिंग और मोबाइल-टेलीफोन कॉल के जरिये मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श देने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इस पहल का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना के संक्रमण से बचाने के साथ-साथ अस्पतालों में रोगियों की भीड़ को कम करना है.
नई दिल्ली। 29 मार्च कोरोना वायरस से लड़ाई में 21 दिन के लॉकडाउन के बीच सरकार ने पहली बार एम्स सहित अन्य अस्पतालों में व्हाट्सएप्प, वीडियो कॉलिंग और मोबाइल-टेलीफोन कॉल के जरिये मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श देने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इस पहल का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना के संक्रमण से बचाने के साथ-साथ अस्पतालों में रोगियों की भीड़ को कम करना है.
एम्स सहित अन्य अस्पतालों ने इन दिशानिर्देशों के पालन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने लोकमत सामाचार से विशेष बातचीत में कहा कि एम्स अगले सप्ताह से व्हाट्सएप्प और वीडियो कॉल के जरिये रोगियों को चिकित्सकीय परामर्श देना शुरू करेगा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए यह जरूरी है कि लोग अपने घरों में रहें. मरीज टेलीफोन या वीडियोकॉल के जरिये अपने डॉक्टरों से परामर्श कर सकते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ने पंजीकृत चिकित्सा पेशेवरों (आरएमपी) को प्रौद्योगिकी के माध्यम से दूरस्थ स्थानों से परामर्श देने, काउंसिलिंग, चिकित्सा शिक्षा और उपचार देने की अनुमति दी है. इनमें व्हाट्सएप्प, फेसबुक, मैसेंजर, स्काइप, ई-मेल या फैक्स जैसे माध्यम शामिल है.
भारत में अब तक वीडियो, फोन, इंटरनेट आधारित प्लेटफार्म वेब, चैट, एप्प आदि के माध्यम से टेलीमेडिसिन के अभ्यास पर कोई कानून या दिशानिर्देश नहीं था. नए दिशा-निर्देशों से कोरोना संक्र मण से बचाव के साथ चिकित्सा परामर्श पहुंचाने में तेजी आएगी. इससे अस्पतालों पर रोगियों की भीड़ कम होगी. एम्स एंड्रोक्रोनोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. निखिल टंडन ने विशेष बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार की ओर से टेलीमेडिसिन को लेकर पहली बार जारी दिशा-निर्देश 5 तरीके से व्यवहारिक रूप से अमल में लाए जा सकते हैं. उन्होंने केंद्र सरकार को टेलीमेडिसिन को व्यवहारिक रूप में कैसे लागू करें, इसका मॉडल तैयार कर भेजा है.
जिससे जल्द से जल्द अस्पतालों में इस व्यवस्था को लागू किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि पहला मॉडल फॉलोअप पेशेंट और नए मरीज को लेकर है. अगर नया मरीज है तो यह चिकित्सक तय करेगा की रोगी को तत्काल देखना कितना जरूरी है. पुराने रोगी को बैकग्राउंड के आधार पर चिकित्सक दवाएं लिख सकते हैं. अगर पुराने पेशेंट ने कोई नया टेस्ट कराया है तो उसके आधार पर बीमारी के तथ्यों को जानकर आगे की दवाई लिख सकते हैं और पुरानी दवाओं में कुछ बदलाव कर सकते हैं. ऐसे रोगी जो बुजुर्ग हैं या बच्चे हैं उन्हें अस्पताल में आने से बचाने के लिए भी टेलीमेडिसिन काउंसलिंग की जा सकती है. अगर रोगी की रिपोर्ट किसी दूसरे चिकित्सक या विभाग में विचार-विमर्श के लिए भेजनी है या चिकित्सक से सलाह लेनी है तो उस विभाग के चिकित्सकों से बात करके मरीज को उस आधार पर नई दवा के लिए या दवाओं में बदलाव बताना होगा.