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कोरोना-काल में तलाकशुदा महिलाओं के लिए गुजारा-भत्ता मिलना मुश्किल

By शिरीष खरे | Updated: July 1, 2020 14:33 IST

निजी क्षेत्र में कई कर्मचारियों के बेरोजगार होने या उनके वेतन में कटौती के चलते उन्हें तलाकशुदा महिलाओं को प्रति माह एक निर्धारित राशि देने में कठिनाई हो रही है. अचानक गुजारा भत्ता पूरी तरह बंद होने की स्थिति में तलाकशुदा महिलाओं ने न्यायालय का दरवाजा घटघटाया है. 

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ठळक मुद्देकोरोना संकट ने कर्मचारियों को वित्तीय संकट की तरफ धकेल दिया है.हर महीने गुजारा भत्तों पर निर्भर रहने वाली तलाकशुदा महिलाएं आर्थिक समस्या से जूझ रही हैं

पुणे: कोरोना के प्रकोप ने विशेष तौर से निजी क्षेत्र के अंतर्गत बड़ी संख्या में काम करने वाले कर्मचारियों को वित्तीय संकट की तरफ धकेल दिया है. इसकी वजह से हर महीने गुजारा भत्तों पर निर्भर रहने वाली तलाकशुदा महिलाएं आर्थिक समस्या से जूझ रही हैं. लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए वित्तीय संकट के कारण ऐसी महिलाओं के गुजारा भत्ते और उससे जुड़े दावों बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

दरअसल, निजी क्षेत्र में कई कर्मचारियों के बेरोजगार होने या उनके वेतन में कटौती के चलते उन्हें तलाकशुदा महिलाओं को प्रति माह एक निर्धारित राशि देने में कठिनाई हो रही है. लिहाजा, अनेक तलाकशुदा महिलाएं इन दिनों गुजारा भत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. पुणे का ही उदाहरण लें तो पारिवारिक न्यायालय में आधे से अधिक प्रकरण गुजारा भत्ते और उनसे संबंधित दावों के बारे में हैं. इनमें अधिकतर तलाकशुदा महिलाओं ने अचानक गुजारा भत्ता पूरी तरह बंद होने की स्थिति में न्यायालय का दरवाजा घटघटाया है. 

गुजारा भत्ता नहीं मिलने से महिलाओं को करना पड़ रहा है आर्थिक तंगी का सामना

दूसरी तरफ, लॉकडाउन में कई तरह की छूट मिलने के बावजूद अनेक निजी कंपनियों का संचालन और कारोबार सुचारू रूप से शुरू नहीं हुए हैं. हालांकि, इस समय पारिवारिक न्यायालयों में भी महत्वपूर्ण दावों की सुनवाई हो रही है. इसलिए, ऐसी महिलाओं की शिकायतों की सुनवाई के लिए अगले एक से दो महीने बाद की तारीखे दी जा रही हैं. वहीं, एक अनुमान यह भी है कि आने वाले महीनों में गुजारा भत्तों से जुड़े दावों के बढ़ सकते हैं.

पारिवारिक न्यायलय में वकील सुप्रिया कोठारी कहती हैं कि गुजारा भत्ता का मुद्दा या दावा बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील है. वे कहती हैं, 'यदि शिकायत करने वाली महिलाओं को कोर्ट द्वारा गुजारा भत्ते का आदेश दिया जाता है तो इसके साथ तलाकशुदा महिला के पति की वास्तविक वित्तीय स्थिति के बारे में पड़ताल की जानी चाहिए. यह सच है कि लॉकडाउन का बहुत बुरा प्रभाव खासकर निजी क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों पर पड़ा है. किसी का बहुत अधिक वेतन काटा गया है तो कोई बेकार ही हो चुका है. इस वजह से गुजारा भत्ता नहीं मिलने से समाज की अनेक महिलाओं को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.ऐसे में कोर्ट सरकार को इस वर्ग के कर्मचारियों और ऐसी महिलाओं का ध्यान में रखते हुए एक निर्धारित समय के लिए राहत पैकेज जारी करने के निर्देश दे सकता है.'

कर्मचारी झेल रहे हैं होम-ऑटो लोन की किस्तें चुकाने का दबाव

इस वर्ग के एक कर्मचारी विनायक खैरे को पिछले मार्च में एक एनजीओ ने ड्राइवर के पद से निकाल दिया गया है. इस कारण वे उनकी तलाकशुदा पत्नी को अप्रैल से गुजारा नहीं दे पा रहे हैं. वे कहते हैं, 'यदि मुझे गुजारा भत्ता नहीं देना होता तो मार्च के पहले ही बंद कर सकता था. पर, मैंने पिछले तीन साल में ऐसा नहीं किया. कोर्ट को यह बात नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए कि बेकारी के समय मुझे मेरी गृहस्थी चलानी मुश्किल हो गई है.' 

इसके अलावा, निजी क्षेत्र के कई कर्मचारी होम लोन या ऑटो लोन की किस्तें चुकाने जैसे दबाव भी झेल रहे हैं. कुछ कर्मचारी तो इसी दौरान बीमार भी पड़ गए हैं. ऑटो रिक्शा चालक गणेश ठाकुर बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उन्होंने अपने परिचितों से कर्ज लिया है. इसलिए, वे अगले कुछ महीनों तक भी गुजारा भत्ता नहीं दे पाएंगे. सुप्रिया कोठारी कहती हैं कि परिवार न्यायालय ने कामकाज शुरू कर दिया है लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि अनेक कर्मचारियों की वित्तीय स्थिति सुधारने में अभी कुछ समय लगेगा. इसे ध्यान में रखते हुए किसी नतीजे पर पहुंचना कहीं अधिक व्यवहारिक होगा.

तलाकशुदा महिला ने बताया अपना दर्द 

एक तलाकशुदा महिला नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं कि बकाया गुजारा भत्ता यदि उन्हें कुछ किश्तों में दिया जाए तब भी वे राजी हैं. वे कहती हैं, 'गुजार भत्ते के लिए मंजूर की गई राशि से कोई समझौता नहीं होना चाहिए. पिछली रकम को किश्तों में दें तो भी चलेगा. माना हालात बुरे हैं लेकिन कोई भी निर्णय हमारे पक्ष को ध्यान में रखकर लिया जाए, क्योंकि हम पहले से ही बहुत परेशान हैं.' इसी तरह, कुछ तलाकशुदा महिलाएं ऐसे समय में आपसी समझौते के लिए तैयार हो रही हैं. वे पूर्व पतियों से सुविधा के अनुसार गुजारा भत्ता लेने के लिए किसी स्थिति में हल निकालने को राजी हैं और चरणबद्ध तरीके से गुजारा भत्ते पाना चाहती हैं.

दूसरी तरफ, पारिवारिक न्यायालय वकील संघ की अध्यक्ष वैशाली चांदने के मुताबिक, 'गुजारा भत्ता देने के आदेश के बावजूद यदि किसी स्थिति में आदेश का पालन नहीं होता है तो इस बिंदु पर भी विचार किया जाना चाहिए. यह भी सच है कि अनेक कर्मचारी कुछ वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए गुजारा भत्ते से बच रहे हैं, जबकि वे गुजारा भत्ता दे सकते थे. यदि वित्तीय स्थिति अच्छी है तो गलत कारण देना उचित नहीं है.'

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