कांग्रेस के मनीष तिवारी ने संसद में हो रहे हंगामे पर कहा, "ये आदर्श न बने, केवल मुश्किल हालत में हो तभी ठीक है"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 24, 2022 09:57 PM2022-07-24T21:57:16+5:302022-07-24T22:00:44+5:30
संसद में विभिन्न मुद्दों पर हो रही हंगामे की स्थिति पर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि विपक्ष को इस बात को समझना चाहिए कि व्यवधान की स्थिति केवल जरूरी संदर्भों में करना चाहिए इसे किसी भी कीमत पर आदर्श नहीं बनया जा सकता है।
दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मनीष तिवारी ने हंगामे के कारण बार-बार स्थगित होती संसद के विषय में चिंता व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि इस संबंध में सांसदों को गंभीरता से आत्ममंथन करने की जरूरत है कि गंभीर मुद्दों पर संसद में केवल व्यवधान और स्थगन ही "वैध रणनीति" है।
मनीष तिवारी ने कहा कि विपक्ष को इस बात को समझना चाहिए कि व्यवधान की स्थिति केवल जरूरी संदर्भों में करना चाहिए इसे किसी भी कीमत पर आदर्श नहीं बनया जा सकता है।
हालांकि इसके साथ तिवारी ने यह भी कहा कि सदन चलाने की मुख्य जिम्मेदारी सरकार की जिम्मेदारी है और इसके लिए विपक्ष या कांग्रेस को दोष देना भी गलत है। स्थगन के लिए सरकार विपक्ष को दोषी ठहराकर "दुर्भाग्यपूर्ण और अवसरवादी" राजनीति का परिचय दे रही है। साल 2004 से 2014 के दौरान भाजपा और उसके सहयोगियों ने विपक्ष के रूप में यूपीए शासनकाल के दौरान अनगिनत बार संसद को बाधित किया था।
समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ बात करते हुए मनीष तिवारी ने सुझाव दिया कि एक नियम के तौर पर शाम 6 बजे जब सदन का सरकारी कामकाज समाप्त हो जाता है तो सरकार नियम 193 के तहत विपक्ष द्वारा सामूहिक रूप से तय किए गए किसी भी विषय पर चर्चा करने की अनुमति दे।
उन्होंने कहा, "मैंने अध्यक्ष (ओम बिड़ला) के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में यह भी सुझाव दिया था कि सदन के प्रत्येक कार्य दिवस पर एक नियम के तहत शाम 6 बजे सरकारी कामकाज समाप्त होने के बाद विपक्ष द्वारा उठाये गये किसी भी विषय पर लोकसभा की नियमावली 193 के तहत चर्चा कराई जानी चाहिए।
तिवारी ने कहा, इसी तरह समवर्ती नियम के अनुरूप राज्यसभा में विपक्ष द्वारा उठाये गये आवश्यक विषय पर चर्चा हो सकती है। मानसून सत्र के पहले सप्ताह के लगभग निर्थरक रही सदन की बहस पर अफसोस जताते हुए मनीष तिवारी ने कहा, “आज के दौर में संसद एक सामूहिक संस्था के तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से देश के राष्ट्रीय विमर्श पर चर्चा करने के लिए अप्रासंगिक हो गए हैं।"
उन्होंने कहा, "ऐसा इसलिए हो रहा है कि क्योंकि दशकों से चली आ रही चर्चा की पंरपरा को सभी दलों के सांसदों और विधानसभा में विधायकों ने व्यवस्थित रूप अवमूल्यन किया है।"
मनीष तिवारी ने सरकार से प्रश्न करते हुए कहा, "आप एक ऐसी संस्था के बारे में क्या सोचेंगे जहां व्यवधान ही आदर्श है और कामकाज अपवाद बन गया है? आप सुप्रीम कोर्ट के बारे में क्या सोचेंगे यदि वकील नियमित रूप से उसके कामकाज को बाधित करते हैं? आप कार्यपालिका के बारे में क्या सोचेंगे, जहां सचिव, संयुक्त सचिव या अन्य अधिकारी नियमित और लंबे समय तक विघटनकारी होड़ में लगे रहते हैं।"
इस चिंता के बाद मनीष तिवारी ने कहा, "संसद में विपक्ष द्वारा व्यवधान की रणनीति इस्तेमाल किया जाना चाहिए, लेकिन विपक्ष को साथ में यह भी सोचना होगा कि ये संसद के लिए आदर्श स्थिति न बने।"
पंजाब के आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि कहा कि मुख्य तौर पर सदन चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है और विपक्ष उसमें सहायक की भूमिका अदा करता है। ऐसे में सरकार का यह करना की विपक्ष के कारण सदन का कार्य बाधित हो रहा है, यह विपक्ष के साथ अन्याय होगा। आज जो सत्ता में बैठे हैं, कल वो भी विपक्ष में थे। उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का दौर भी याद करना चाहिए कि वो किस तरह से सदन के कार्य या बहस को बाधित करते थे।