दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 0 पर आउट?, बिहार में भविष्य को लेकर चर्चा तेज, लालू यादव ने वोट बैंक पर किया कब्जा!
By एस पी सिन्हा | Updated: February 10, 2025 15:11 IST2025-02-10T15:10:18+5:302025-02-10T15:11:36+5:30
राजनीति के जानकारों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस पार्टी राजद की जमीन नहीं, बल्कि राजद ही कांग्रेस के आधार को खा गई। राजद ने कांग्रेस के आधार वोट बैंक को ही अपना बना लिया।

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पटनाः दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद बिहार में कांग्रेस के भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं। बिहार में राजद के करीब आई कांग्रेस का हाल आज यह है कि पार्टी परजीवी हो गई है। तीन दशक से ज्यादा वक्त से कांग्रेस राजद की पिछलग्गू बनी हुई है। वर्ष 2005 में मात्र 5 सीटों पर सिमटी, 2010 में कांग्रेस चार सीटें ही जीत पाई और वर्ष 2015 में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को चयन किया था। कांग्रेस के लिए इससे बड़ा अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता। राजनीति के जानकारों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस पार्टी राजद की जमीन नहीं, बल्कि इसके विपरीत राजद ही कांग्रेस के आधार को खा गई। राजद ने कांग्रेस के आधार वोट बैंक को ही अपना बना लिया।
वर्ष 1990 के बाद बीते साढ़े तीन दशक की बिहार की राजनीति में कांग्रेस राजद से बाहर की सोच भी नहीं पा रही है। इस कालखंड में कांग्रेस अपने मजबूत आधार को ही गंवा बैठी। कांग्रेस अपना वोट बैंक राजद के हाथों गंवा चुकने के बाद खड़ी भी नहीं हो पा रही है। कांग्रेस न तो सवर्णों का होकर रह पाई, न पिछड़ों में आधार बना पाई और दलित समुदाय ने तो कांग्रेस से किनारा ही कर लिया।
इससे भी बढ़कर जो मुसलमानों ने भी कांग्रेस का साथ पूरी तरह से छोड़ दिया और राजद के साथ पूरी मजबूती से खड़े हो गए। हाल ही में जब कांग्रेस नेताओं ने 2025 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर दावेदारी ठोक दी तो राजद ने चुप्पी साधकर उसे साफ इशारा दे दिया कि चलना मेरे ही अनुसार होगा।
इसी बीच बिहार दौरे पर आए राहुल गांधी ने लालू यादव के दरबार में हाजिरी लगाकर बिहार में कांग्रेस नेताओं की बोलती बंद कर दी। बिहार में महागठबंधन की राजनीति की मजबूरी भी हो जिसमें राजद कांग्रेस के अतिरिक्त तीन वामपंथी दल और एक मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी समेत 6 सियासी दल शामिल हैं।
जाहिर तौर पर सीटों की हिस्सेदारी को लेकर महागठबंधन में रार की सूरत भी बन रही है। लेकिन, कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का कद बिहार में इतना कम हो गया कि 243 सदस्यों के विधानसभा वाले राज्य बिहार में वह 70 सीट भी न लड़ पाए, तो यह सोचनीय जरूर है। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस 9 सीटों पर लड़ कर 3 सीटें जीत पाई।
वहीं राजद 22 सीटों पर लड़ी थी, पर उसके 4 उम्मीदवार ही सांसद ही निर्वाचित हुए थे। ऐसे में कांग्रेस अपनी स्ट्राइक रेट राजद से अधिक बताते हुए विधानसभा चुनाव की दावेदारी करने की कवायद कर रही है। 1995 के चुनाव में कांग्रेस मात्र 29 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद साल 2000 में लालू यादव ने कांग्रेस के 23 विधायकों को राबड़ी देवी कैबिनेट में शामिल किया और कांग्रेस का अवसान काल लंबा होता चला गया। इसी वर्ष वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह को विधानसभा का अध्यक्ष भी बनाया गया।
इसके बाद तो जैसे कांग्रेस पर भी राजद का कब्जा हो गया और कांग्रेस छोटी पार्टी की भूमिका में आ गई। कभी-कभार कांग्रेस उभार की कोशिश करती है पर हिम्मत नहीं जुटा पाती है। हाल में राहुल गांधी लगातार बिहार दौरे पर आ रहे हैं और राजद के एजेंडे को अपना एजेंडा बनाने की कवायद कर रहे हैं। वह अपने जनाधार के विस्तार के लिए संभवत: आतुर भी दिखती है। लेकिन कांग्रेस राजद के साये से निकलने की हिम्मत दिखा पाएगी। इसको लेकर अब भी राजनीति के जानकारों में संशय है।