पर्यावरण प्रबंधन पर मीडियाकर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

By भाषा | Updated: November 12, 2021 20:21 IST2021-11-12T20:21:19+5:302021-11-12T20:21:19+5:30

Completion of training program for media persons on environmental management | पर्यावरण प्रबंधन पर मीडियाकर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

पर्यावरण प्रबंधन पर मीडियाकर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

देहरादून, 12 नवंबर पर्यावरण प्रबंधन पर मीडियाकर्मियों के लिए आयोजित दो दिवसीय वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यक्रम का यहां केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा में शुक्रवार को समापन हो गया जिसमें पत्रकार रमेश मेनन ने नीति निर्माताओं के लिए जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर ज्यादा संवेदनशीलता की जरूरत बताई ।

वर्ष 2006 में पर्यावरणीय पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार पाने वाले मेनन ने कार्यक्रम के आखिरी सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘भारत जलवायु परिवर्तन के बारे में बातें बहुत कर रहा है लेकिन इसके लिए कर थोड़ा रहा है।’’

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और मानव-पशु संघर्ष बहुत जटिल मुद्दे हैं तथा पत्रकारों को इन विषयों पर एक प्रकार की सामाजिक जागरूकता पैदा करने के लिए इनके बारे में लिखते रहना चाहिए।

मेनन ने कहा, ‘‘पर्यावरण संरक्षण में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें हमेशा यह सोचना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम किस प्रकार का पर्यावरण छोड़कर जाने वाले हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत को प्रदूषण कम करना चाहिए और अपने वनों, नदियों तथा झीलों को पुनर्जीवित करना चाहिए और उन्हें प्रदूषित करने वाले लोगों पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए।’’

मेनन ने कहा कि इतनी समृद्ध जैव विविधता वाले देश को इसे बचाए रखने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।

विकास और पर्यावरण संरक्षण को साथ-साथ चलाए जाने की वकालत करते हुए मेनन ने कहा कि पर्यावरण की की​मत पर विकास नहीं होना चाहिए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘हम प्रकृति से छेड़छाड़ करेंगे तो उसकी प्रतिक्रिया होगी।’’

दिल्ली में हवा की बिगड़ती गुणवत्ता और यमुना में औद्योगिक अपशिष्टों की तैर रहीं परतों को चेतावनी बताते हुए उन्होंने जलस्रोतों को जीवित रखने के लिए धार्मिक समारोहों पर पुनर्विचार करने को कहा जिनमें नदियों और समुद्रों के प्रदूषित होने का खतरा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपने जलस्रोतों को कूड़ा फेंकने की जगहों की तरह इस्तेमाल करने से बचना होगा।’’

पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर राजनीतिक असंवेदनशीलता का एक उदाहरण देते हुए मेनन ने कहा कि कुछ साल पहले तक नोएडा में एक ‘सिटी फॉरेस्ट’ हुआ करता था और उसके पास की सड़क से गुजरने पर लोगों को ठंडक का अच्छा अहसास हुआ करता था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने एक नेता की मूर्तियां लगाने के लिए वहां तीन हजार वृक्ष काटकर पार्क बना दिया। उन्होंने कहा, ‘‘मूर्तियां वहां आज भी लगी हैं लेकिन वहां कोई पेड़ नहीं है।’’

मेनन ने अधिकारियों से कीटनाशकों का प्रयोग भी कम करने को कहा। उन्होंने कहा कि ये मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक हैं।

इससे पहले, वक्ताओं ने वन संरक्षण अधिनियम के सख्त अनुपालन की जरूरत बताई।

पर्यावरण अधिवक्ता ऋत्विक दत्ता ने कहा कि वर्तमान में देश में वन भूमि को रिजॉर्ट आदि व्यापारिक प्रयोजनों के वास्ते इस्तेमाल किए जाने के औसतन 99.99 प्रतिशत प्रस्ताव मंजूर हो रहे हैं। उन्होंने वन भूमि को निजी हाथों में जाने से बचाने के लिए सख्त प्रावधानों की आवश्यकता पर जोर दिया।

दत्ता ने पर्यावरण प्रबंधन में विश्व के 189 देशों की सूची में भारत के 186 वें स्थान पर होने पर भी चिंता जताई।

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