नयी दिल्ली, 15 मार्च केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सोमवार को कहा कि पेरिस समझौते के तहत 2009 में 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के जलवायु वित्तपोषण और हरित तकनीक के वादे का फायदा विकासशील देशों को मिलना अभी बाकि है।
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिर्वतन के अभिसमय के पक्षकारों का सम्मेलन (कोप15) में विकसित देशों ने वर्ष 2020 तक विकासशील देशों की जरूरतों के समाधान के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के जलवायु वित्तपोषण को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी। यह प्रतिबद्धता तभी से अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं का अहम मुद्दा रहा है।
जावड़ेकर ने राज्यसभा में एक पूरक सवाल के जवाब में कहा कि 100 अरब अमेरिकी डॉलर आज एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुका है। यह वित्तपोषण जिस तरीके से यह होना चाहिए था, वैसा नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत ने अपने हाल की वार्ताओं में सभी संबंधित पक्षकारों के समक्ष जलवायु वित्तपोषण पर जोर दिया है।
जलवायु परिवर्तन को किसी क्षेत्र विशेष का मुद्दा ना बताते हुए उन्होंने इसे वैश्विक मुद्दा बताया और कहा, ‘‘हमें साझा प्रयास करने होंगे। ऐसा नहीं हे कि कोई एक देश करे और बाकी देश कुछ ना करें। इससे समस्या का समाधान नहीं निकलेगा।’’
उन्होंने कहा कि भारत 2009 में विकासशील देशों के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के जलवायु वित्तपोषण के वादे पर जोर देता रहा है।
एक अन्य पूरक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2014 में सोर ऊर्जा का कुल उत्पादन 2000 मेगावाट था। अब यह कुल मिलाकर 90,000 मेगावाट है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पिछले छह सालों में 14 गुण की वृद्धि हुई है।
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