आंतरिक जाँच रिपोर्ट में 'प्रतिकूल टिप्पणी' के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज को न्यायिक कामकाज से किया गया दूर
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: January 31, 2018 10:22 AM2018-01-31T10:22:05+5:302018-01-31T10:24:55+5:30
जस्टिस श्नी नारायण शुक्ला के खिलाफ ऐसे ही एक अन्य मामले में सीबीआई ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से एफआईआर दर्ज करने की इजाजत माँगी थी जो नहीं मिली थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस श्री नारायण शुक्ला को सभी न्यायिक कार्यों से हटा दिया गया है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) मामले में जुड़ी आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने ये फैसला लिया। कमेटी की रिपोर्ट में जीसीआरजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से जुड़े मामले में जस्टिस शुक्ला के भूमिका पर प्रतिकूल टिप्पणी की गयी है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस शुक्ला उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक से मंजूरी लेकर 90 दिन की छुट्टी पर चले गये हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस शुक्ला के खिलाफ एमसीआई से जुड़े एक अन्य मामले में एफआईआर करने की इजाजत सीबीआई ने माँगी थी जिसकी इजाजत मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने नहीं दी थी। प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा चलाए जाने वाला मेडिकल कॉलेज पर एमसीआई द्वारा प्रतिबंध लगाने के मामले में भी जस्टिस शुक्ला ही जज थे। रिपोर्ट के अनुसार जीसीआरजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से जुड़े मामले में मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिए गये ताजा फैसले के बाद सीबीआई प्रसाज एजुकेशन ट्रस्ट मामले की एफआईआर में जस्टिस शुक्ला का नाम शामिल करने की इजाजत माँग सकती है।
जस्टिस शुक्ला से जुड़े मामले की जाँच करने वाली न्यायालय की आंतरिक कमेटी में मद्रास हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसके अग्निहोत्री और मद्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पीके जायसवाल शामिल थे। देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने ये कमेटी दिसंबर 2017 में गठित की थी। उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल ने सितंबर के पहले हफ्ते में जस्टिस शुक्ला के खिलाफ "अनियमितता" का आरोप लगाया था जिसके बाद सीजेआई दीपक मिश्रा ने जांच कमेटी गठित की थी।
जस्टिस शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाये गये रोक को पलटते हुए लखनऊ स्थित जीसीआरजी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज को 2017-18 के शैक्षणिक सत्र में विद्यार्थियों के प्रवेश की अनुमति दे दी थी। जस्टिस शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने खुद ही एक सितंबर 2017 को दिए अपनी पीठ के आदेश में चार सितंबर 2017 को हाथ से लिखकर बदलाव किये थे ताकि जीसीआरजी के कॉलेज में एडमिशन हो सकें। 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कॉलेज को संबंधित सत्र में एडमिशन लेने वाले सभी छात्रों को 10-10 लाख रुपये लौटाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। एमसीआई ने अपनी जाँच में पाया था कि कॉलेज को मानकों के अनुरूप नहीं पाया था।