केंद्रीय नेतृत्व से सलाह मशवरे के बाद देहरादून पहुंचे मुख्यमंत्री रावत

By भाषा | Updated: July 2, 2021 21:40 IST2021-07-02T21:40:52+5:302021-07-02T21:40:52+5:30

Chief Minister Rawat reached Dehradun after consultation with the central leadership | केंद्रीय नेतृत्व से सलाह मशवरे के बाद देहरादून पहुंचे मुख्यमंत्री रावत

केंद्रीय नेतृत्व से सलाह मशवरे के बाद देहरादून पहुंचे मुख्यमंत्री रावत

नयी दिल्ली/देहराहून, दो जुलाई उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत केंद्रीय नेतृत्व से सलाह मशवरे के बाद शुक्रवार शाम देहरादून लौट गए । ऐसी चर्चा है कि मुख्यमंत्री यहां एक संवाददाता सममेलन में अपने इस्तीफे की घोषणा कर सकते हैं।

जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कोई बात नहीं की और सीधे अपने आवास पहुंचे।

इस बीच, सूत्रों से जानकारी मिली है कि शनिवार को भाजपा विधायक दल की बैठक बुलाई गई है जिसमें केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर उपस्थित रहेंगे।

तीन दिनों के दिल्ली प्रवास के बाद देहरादून रवाना होने से पहले उन्होंने संकेत दिया था कि नेतृत्व परिवर्तन के बारे में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का केंद्रीय नेतृत्व कोई भी निर्णय निर्वाचन आयोग द्वारा उपचुनाव कराने या ना कराने के संबंध में लिए गए फैसले पर निर्भर करेगा।

इस संभावना के मद्देनजर कि निर्वाचन आयोग राज्य विधानसभा के चुनाव में एक साल से कम का समय बचा होने के कारण उपचुनाव ना करवाए, उत्तराखंड में अटकलें तेज हैं कि भाजपा किसी विधायक को मुख्यमंत्री चुन सकती है।

पौड़ी से लोकसभा सांसद रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर भाजपा नेतृत्व ने तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। अपने पद पर बने रहने के लिए तीरथ सिंह रावत का 10 सितम्बर तक विधानसभा सदस्य निर्वाचित होना संवैधानिक बाध्यता है।

जनप्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के मुताबिक निर्वाचन आयोग संसद के दोनों सदनों और राज्‍यों के विधायी सदनों में खाली सीटों को रिक्ति होने की तिथि से छह माह के भीतर उपचुनावों के द्वारा भरने के लिए अधिकृत है, बशर्तें किसी रिक्ति से जुड़े किसी सदस्‍य का शेष कार्यकाल एक वर्ष अथवा उससे अधिक हो।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि चूंकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने में एक साल से भी कम का समय बचा है इसलिए निर्वाचन आयोग राज्य विधानसभा की खाली सीटों पर उपचुनाव नहीं भी करवा सकता है।

इस संभावना को इसलिए भी बल मिल रहा है कि कोरोना काल में चुनाव कराने को लेकर निर्वाचन आयोग को पिछले दिनों अदालत की कड़ी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा था। राजनीतिक जानकारों की मानें तो ऐसे में निर्वाचन आयोग के लिए उपचुनाव कराना आसान नहीं होगा।

बहरहाल, मुख्यमंत्री रावत ने शुक्रवार को, पिछले 24 घंटों के भीतर दूसरी बार भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की।

नड्डा से मुलाकात के बाद रावत ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि उन्होंने भाजपा अध्यक्ष से आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा की।

उनसे उपचुनाव के संबंध में जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह विषय निर्वाचन आयोग का है और इसके बारे में कोई भी फैसला उसे ही करना है।

उन्होंने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस बारे में जो भी रणनीति तय करेगा उसे आगे धरातल पर उतारा जाएगा।

प्रदेश में फिलहाल विधानसभा की दो सीटें, गंगोत्री और हल्द्वानी रिक्त हैं जहां उपचुनाव कराया जाना है। चूंकि राज्य में अगले ही साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होना प्रस्तावित है और इसमें साल भर से कम का समय बचा है, ऐसे में कानून के जानकारों का मानना है कि उपचुनाव कराए जाने का फैसला निर्वाचन आयोग के विवेक पर निर्भर करता है।

उत्तराखंड में यह अटकलें भी लगाई जा रही थी कि रावत गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री रावत बुधवार को अचानक दिल्ली पहुंचे थे। बृहस्पतिवार को देर रात उन्होंने नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।

भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत का इस वर्ष अप्रैल में निधन होने से गंगोत्री सीट रिक्त हुई है जबकि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से हल्द्वानी सीट खाली हुई है। हालांकि, अभी तक चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा नहीं की है।

हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि आम चुनाव में साल भर से कम समय शेष होने के कारण उपचुनाव कराना निर्वाचन आयोग की बाध्यता नहीं है।

विकासनगर से भाजपा विधायक और पूर्व प्रदेश पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने कहा, ‘‘यह निर्णय पूरी तरह से चुनाव आयोग के दायरे में है कि राज्य में उपचुनाव कराना है या नहीं। सब कुछ निर्वाचन आयोग पर निर्भर करता है।’’

अगर उपचुनाव होता है तो रावत उसमें निर्वाचित होकर मुख्यमंत्री के पद पर बने रह सकते हैं लेकिन प्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक साल से भी कम का समय बचे होने के मददेनजर उपचुनाव होने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि देश के कुछ अन्य राज्यों में भी उपचुनाव होने हैं।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि उपचुनाव न होने की स्थिति में संवैधानिक संकट का हल तभी निकल सकता है जब मुख्यमंत्री रावत के स्थान पर किसी ऐसे व्यक्ति को कमान सौंपी जाए जो विधायक हो।

हालांकि भाजपा सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व परिवर्तन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का आखिरी विकल्प होगा।

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Web Title: Chief Minister Rawat reached Dehradun after consultation with the central leadership

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