एक न्यायधीश के पास सिर्फ उसकी प्रतिष्ठा होती है: चीफ जस्टिस रंजन गोगोई
By भाषा | Published: April 20, 2019 05:38 PM2019-04-20T17:38:40+5:302019-04-20T17:44:56+5:30
सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सिर्फ ब्लैकमेल करने का तरीका है और ऐसा आचरण करने वाली महिला के खिलाफ जांच की आवश्यकता है।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि किसी न्यायाधीश के पास सिर्फ उसकी ‘‘प्रतिष्ठा’’ ही होती है और यदि यौन उत्पीड़न जैसे निराधार आरोपों से उस पर हमला किया जाता है तो कोई भी ‘‘बुद्धिमान व्यक्ति’’ न्यायाधीश के पद के लिये आगे नहीं आयेगा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यदि इस तरह की बातें होंगी तो कोई भी न्यायाधीश मामलों का फैसला नहीं करेगा। वह (न्यायाधीश) कहेगा कि मुझे क्यों फैसला करना चाहिए। फिर मैं आऊंगा (न्यायालय में) और मामलों को स्थगित कर दूंगा। कोई भी विवेकशील व्यक्ति क्यों न्यायाधीश बनना चाहेगा?
प्रतिष्ठा ही एकमात्र चीज है जो किसी न्यायाधीश के पास होती है।’’ उच्चतम न्यायालय की एक पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा न्यायमूर्ति गोगोई पर लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने शनिवार को इस मामले पर सुनवाई के लिये विशेष पीठ गठित की।
रंजन गोगोई के पास मात्र 6.80 लाख का बैंक बैलेंस
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश गोगोई के साथ न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सदस्य थे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि करीब दो दशक तक न्यायाधीश रहने के बाद उनके पास बैंक में 6.80 लाख रूपए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बैंक में मेरा 6.80 लाख रूपए का बैलेंस है। मेरे बैंक खाते में 21.80 लाख रूपए हैं जिनमें से 15 लाख रूपए मेरी बेटी ने गुवाहाटी में मेरे घर की मरम्मत के लिये दिये हैं।
भविष्य निधि में मेरे करीब 40 लाख रूपए हैं। यह मेरी कुल जमा पूंजी हैं।’’ न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘मैं जब न्यायाधीश बना था तो मेरे पास कहीं अधिक था। धन के मामले में मुझे कोई पकड़ नही सकता। लोगों को कुछ और तलाश करना था और उन्हें यह मिल गया।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यदि किसी न्यायाधीश को इस तरह के माहौल में काम करना होगा तो मैंने हमेशा ही अपनी सार्वजनिक बैठकों में कहा है कि अच्छे व्यक्ति इस कार्य को अपने हाथ में लेने के लिये आगे नहीं आयेंगे। मेरे चपरासी के पास मुझसे ज्यादा पैसा है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने आरोप लगाया कि इस महिला का आपराधिक रिकार्ड है और उसके खिलाफ दो प्राथमिकियां दर्ज हैं। जब वह शीर्ष अदालत में नौकरी करती थी तो उस समय उसके खिलाफ एक प्राथमिकी लंबित थी।
न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘जब उसके खिलाफ प्राथमिकी लंबित थी तो वह उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी कैसे बन सकती थी।’’ उन्होंने कहा कि उसके पति के खिलाफ भी दो आपराधिक मामले लंबित हैं।
महिला का आपराधिक रिकॉर्ड
उन्होंने कहा कि इस महिला के खिलाफ तीसरी प्राथमिकी दर्ज होने पर उसे गिरफ्तार किया गया और जमानत मिलने के बाद उसने तीसरे मामले के शिकायतकर्ता को गंभीर नतीजों की धमकी भी दी। उन्होंने कहा कि यह महिला अपने आपराधिक रिकार्ड की वजह से चार दिन जेल में भी रही और पुलिस ने उसे आगाह भी किया कि वह अच्छा आचरण करे।
न्यायपालिका खतरे में है
न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘‘मुझे लगा कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पद से यह बताया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद गंभीर खतरा है। यह सोचनीय है।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस ने इस महिला की जमानत रद्द कराने के लिये अदालत में अर्जी दायर की है और यह मामला निचली अदालत में शनिवार को ही सूचीबद्ध है।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने न्यायालय से कहा कि इससे पहले भी इस तरह की दो घटनायें सामने आयी थीं। पहला मामला शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश और दूसरा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के खिलाफ था और इन मामलों में मीडिया को कुछ भी प्रकाशित नहीं करने की हिदायत दी गयी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश के आज के वक्तव्य को यथासंभव व्यापक प्रचार दिया जाना चाहिए।’’ वेणुगोपाल ने कहा कि कानून कहता है कि ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता या प्रतिवादी के नाम प्रचारित नहीं किये जाने चाहिए परंतु आरोपों को प्रसारित करने वाले न्यूज पोर्टल ने बेधड़क इनका प्रकाशन किया।
तुषार मेहता का साथ
उन्होंने कहा कि एक मामले में सरकार का बचाव करने पर एक वकील द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सिर्फ ब्लैकमेल करने का तरीका है और ऐसा आचरण करने वाली महिला के खिलाफ जांच की आवश्यकता है।
मेहता ने कहा, ‘‘जांच में हम एक तरह के सिलसिले का पता लगा सकते हैं। एक घंटे के भीतर ही यह खबर प्रकाशित हुयी। इस तरह का कचरा प्रकाशित किया गया है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश होने के नाते यह विशेष बैठक करने की जिम्मेदारी मेरी थी।
मैंने ही यह असामान्य और असाधारण कदम उठाया क्योंकि बात काफी आगे बढ़ गयी है। न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता।’’ सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंता है क्योंकि देश की जनता का न्यायिक प्रणाली में भरोसा है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि न्यायाधीशों को मुकदमों का फैसला करना होता है और उन्हें इस तरह के दबावों में नहीं लाया जा सकता।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘‘कर्मचारी को उचित प्रक्रिया का पालन करके बर्खास्त किया गया। अचानक ही उन्हें होश आया और इस तरह के आरोप लगा दिये।’’ सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत में प्रत्येक कर्मचारी के साथ निष्पक्षता और सही तरीके से पेश आया जाता है।