केंद्र ने फांसी के जरिए मौत की सजा देने का समर्थन किया, अन्य तरीकों से किया इनकार

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: April 25, 2018 02:09 IST2018-04-25T02:09:36+5:302018-04-25T02:09:36+5:30

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जवाब तब दाखिल किया जब सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को मार्गदर्शन करने वाली 'करूणामयी' पुस्तक करार दिया और सरकार से कहा कि वह कानून में बदलाव पर विचार करे ताकि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी 'दर्द से नहीं, शांति से दम तोड़े।'

Center supports death sentence through hanging, refusal in other ways | केंद्र ने फांसी के जरिए मौत की सजा देने का समर्थन किया, अन्य तरीकों से किया इनकार

केंद्र ने फांसी के जरिए मौत की सजा देने का समर्थन किया, अन्य तरीकों से किया इनकार

नई दिल्ली, 25 अप्रैल: केंद्र ने मंगलवार को इस कानूनी प्रावधान का पुरजोर समर्थन किया कि मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी को सिर्फ फांसी की सजा ही दी जाएगी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जानलेवा सुई देकर या गोली मारकर सजा देना भी कम पीड़ादायक नहीं है। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जवाब तब दाखिल किया जब सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को मार्गदर्शन करने वाली 'करूणामयी' पुस्तक करार दिया और सरकार से कहा कि वह कानून में बदलाव पर विचार करे ताकि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी 'दर्द से नहीं, शांति से दम तोड़े।'

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दाखिल हलफनामे में कहा गया, 'आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) में मौत की सजा जिस तरह देने पर मंथन किया गया, वह बर्बर, अमानवीय और क्रूर नहीं है और साथ ही ( संयुक्त राष्ट्र के ) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ( इकोसॉक ) की ओर से स्वीकार किए गए प्रस्तावों की प्रावधान संख्या नौ के अनुकूल है।'

साल 1984 के इकोसॉक के इस प्रावधान में कहा गया है कि मौत की सजा का सामना कर रहे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाएगी। इसके मुताबिक, 'जहां मौत की सजा दी जाती है, वहां यह ऐसे तरीके से दी जाएगी ताकि न्यूनतम तकलीफ से गुजरना पड़े।' गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में कहा गया कि फांसी से होने वाली मौत 'तुरंत और साधारण' होती है और इसमें कोई ऐसी चीज भी नहीं होती है जिससे कैदी को गैर-जरूरी तकलीफ से गुजरना पड़े। 

हलफनामे के मुताबिक, 'जानलेवा सुई, जिसे दर्द रहित माना जाता है, का भी विरोध इस आधार पर किया गया है कि इससे असहज मौत हो सकती है जिसमें दोषी सुई पड़ने के बाद लकवे का शिकार होने के कारण अपनी असहजता को जाहिर करने में सक्षम नहीं रहेगा।' सरकार ने फायरिंग दस्ते की ओर से मौत की सजा देने के विकल्प से भी इनकार करते हुए कहा कि यह दोषी के लिए तब बहुत दर्दनाक साबित होगा यदि शूटर दुर्घटनावश या जानबूझकर सीधे हृदय में गोली नहीं दाग पाते। 

ऋषि मल्होत्रा नाम के एक वकील की ओर दायर जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दायर किया गया। मल्होत्रा ने विधि आयोग की 187 वीं रिपोर्ट का हवाला देकर कानून में मौत की सजा देने के मौजूदा तरीके को खत्म करने की मांग की है। 
 

(भाषा इनपुट के साथ)

Web Title: Center supports death sentence through hanging, refusal in other ways

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