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जानवरों-इंसानों में वायरस का प्रसार रोकने के लिये केंद्र के परामर्श का हो सकता है दुरुपयोग

By भाषा | Updated: April 17, 2020 21:21 IST

वन अधिकार कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और अर्जुन मुंडा को शुक्रवार को पत्र लिखकर कहा कि इंसानों और जानवरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये जारी किये गए परामर्श का प्राकृतिक संसाधनों तक जनजातियों और खानाबदोश समुदाय के लोगों की पहुंच को बाधित करने के लिये “दुरुपयोग” हो सकता है।

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ठळक मुद्देवन अधिकार कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और अर्जुन मुंडा को शुक्रवार को पत्र लिखा। इंसानों और जानवरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये जारी किये गए परामर्श।

नयी दिल्ली: वन अधिकार कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और अर्जुन मुंडा को शुक्रवार को पत्र लिखकर कहा कि इंसानों और जानवरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये जारी किये गए परामर्श का प्राकृतिक संसाधनों तक जनजातियों और खानाबदोश समुदाय के लोगों की पहुंच को बाधित करने के लिये “दुरुपयोग” हो सकता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने छह अप्रैल को सभी राज्यों से कहा था कि वे इंसानों से जानवरों और जानवरों से इंसानों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाएं।

यह निर्देश न्यूयॉर्क के ब्रॉन्क्स चिड़ियाघर में एक बाघ के संक्रमित संरक्षक के संपर्क में आने के बाद बीमार होने की वजह से जारी किया गया। अन्य निर्देशों के अलावा मंत्रालय ने यह भी कहा था कि इंसानों और वन्यजीवों का आमना-सामना कम से कम हो तथा ग्रामीणों को जंगल व अन्य संरक्षित स्थानों की तरफ जाने से रोका जाए। परामर्श के इस पहलू पर चिंता जाहिर करते हुए वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल और आदिवासी जन वन अधिकार मंच समेत जंगल और आदिवासियों के अधिकारों के लिये काम करने वाले कई संगठनों ने कहा, “संरक्षित क्षेत्र के अंदर और आस-पास के इलाकों में करीब 30 से 40 लाख लोग रहते हैं, और इसके ठीक आसपास के इलाकों में बहुत से और लोग भी।

” केंद्रीय पर्यावरण एवं जनजातीय मामलों के मंत्रियों को लिखे गए पत्रों के मुताबिक, “ये अधिकतर अनुसूचित जनजाति और अन्य हैं जिनमें खासतौर पर जनजातीय समूह, खानाबदोश, पशुपालक समुदाय, मछुआरे आदि हैं। वे अपनी दैनिक आजीविका के लिये संरक्षित क्षेत्र और इसके आसपास के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।” कार्यकर्ताओं ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि कोरोना वायरस को रोकने के लिये लागू किये गए राष्ट्रव्यापी बंद से जनजातीय लोगों व आसपास के अन्य लोगों की आजीविका और अस्तित्व पर असर पड़ा है क्योंकि गर्मी के इस मौसम में वन उत्पादों को इकट्ठा कर उन्हें बेच नहीं पा रहे हैं।

उन्होंने कहा, “हमें डर है कि इस परामर्श का गलत आशय निकालकर उसका दुरुपयोग इन लोगों को उस प्राकृतिक संसाधन से और दूर करने के लिये किया जाएगा जिस पर उनकी आजीविका निर्भर है।” पत्र में कहा गया, “इसलिये, हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस परामर्श को ज्यादा स्पष्टीकरण के साथ फिर से जारी किया जाए जिससे जनजातीय लोगों और वहां के निवासियों के प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के परंपरागत और कानूनी अधिकारों पर कोई विपरीत असर न पड़े।” 

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