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फरवरी में समझौता करने के बाद पाकिस्तान ने एक बार फिर से सीजफायर का उल्लंघन किया

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: September 27, 2021 17:13 IST

इस साल फरवरी महीने में फिर से सीजफायर का समझौता करने के बावजूद पाक सेना ने कल कुपवाड़ा के टंगधार के टीथवाल में भारतीय ठिकानों पर जबरदस्त गोलाबारी कर समझौते को तोड़ डाला। दो दिन पहले ही सेना के कमांडरों ने इस सीजफायर के जारी रहने पर खुशी का इजहार किया था।

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ठळक मुद्देदो दिन पहले ही सेना के कमांडरों ने इस सीजफायर के जारी रहने पर खुशी का इजहार किया था।कुछ माह पहले सीमावर्ती कस्बों पर बिना युद्ध की घोषणा के तोपखानों से गोलाबारी नहीं करने का समझौता पाक सेना ने तोड़ डाला था।

जम्मू:पाकिस्तान ने एक बार फिर सीजफायर समझौता तोड़ दिया है। इस पर कोई हैरानगी भी प्रकट नहीं की जा रही है क्योंकि प्रतिक्रिया यह है कि जब पाकिस्तान लिखित समझौतों की लाज ही नहीं रखता तो उसके लिए मौखिक समझौते कोई अहमियत कैसे रख सकते हैं।

इस साल फरवरी महीने में फिर से सीजफायर का समझौता करने के बावजूद पाक सेना ने कल कुपवाड़ा के टंगधार के टीथवाल में भारतीय ठिकानों पर जबरदस्त गोलाबारी कर समझौते को तोड़ डाला। दो दिन पहले ही सेना के कमांडरों ने इस सीजफायर के जारी रहने पर खुशी का इजहार किया था।

पाकिस्तान द्वारा कुछ ही महीनों के भीतर अपने ही समझौते को तोड़ दिए जाने पर कोई हैरानगी भी नहीं जताई जा रही क्योंकि यह कड़वी सच्चाई है कि पाकिस्तान ने हमेशा ही लिखित समझौतों का उल्लंघन किया है। 

ताशकंद से लेकर शिमला समझौतों की तो बात ही छोड़ दिजिए, सीमा पर किसानों पर गोलाबारी न करने के उन समझौतों की लाज भी उसने कभी नहीं रखी जिनके दस्तावेजों पर उसके सैनिक अधिकारी हस्ताक्षर करते रहे हैं।

सीमा पर खेतीबाड़ी करने वाले किसानों पर गोलियां न दागने के लिखित समझौतों की बदकिस्मती यह रही है कि इनकी उम्र तीन घंटों से लेकर तीन दिन तक ही रही है।

अब जबकि सीमा पर अघोषित युद्ध हो रहा है, ऐसे में लिखित समझौतों के बीच मौखिक समझौते भी होते हैं। जो दोनों देशों के बीच मौखिक इसलिए होते हैं क्योंकि सेक्टर कमांडर आपस में मिलकर इनके प्रति सहमति जताते हैं। 

कुछ माह पहले ऐसा ही एक अहम समझौता पाक सेना ने तोड़ डाला था। यह समझौता था उन सीमावर्ती कस्बों पर बिना युद्ध की घोषणा के तोपखानों से गोलाबारी नहीं करने का जो उनकी तोपों की रेंज में होते हैं। 

ठीक इसी प्रकार का आश्वासन इस ओर से भी मिला हुआ था कि भारतीय सेना अपने तोपखाने के निशाने पर आने वाले पाकिस्तान तथा पाक कब्जे वाले कश्मीर के कस्बों तथा शहरों पर युद्ध की स्थिति के अतिरिक्त तोप के गोलों से नहीं पाटेंगें।

ऐसा भी नहीं है कि पाक सेना ने लिखित या मौखिक समझौतों को पहली बार तोड़ा हो। कुछ साल पहले हुआ कारगिल युद्ध इन्हीं मौखिक समझौतों को तोड़ने का परिणाम था।

असल में दोनों सेनाओं के बीच कारगिल सहित कश्मीर के उन सेक्टरों में, जहां भारी बर्फबारी होती है, यह मौखिक समझौते थे कि सर्दियों में दोनों पक्ष खाली की गई सीमा चौकिओं पर कब्जा नहीं करेंगें। लेकिन पाक सेना ने 1998 की सर्दियों में यह समझौता तोड़ा तो करगिल युद्ध सामने आया।

हालांकि, कश्मीर सीमा के उड़ी सेक्टर तथा पुंछ के केरनी सेक्टर में उससे पहले दो बार सीमा चौकियों को खाली करवाने की भयानक जंग दोनों पक्षों में हो चुकी थी।

टॅग्स :पाकिस्तानसीजफायरArmyजम्मू कश्मीर
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